शनिवार, 31 अगस्त 2013


भर दूँ मैं जीवन में राग खुशी के बाँसुरी बनकर |
हौसले रखना बुलंद !..जीना ना यूँ ही घिसट कर |
रोना ना मजबूरियां जीवन की विकलांग बन कर |
जीना... ये जिन्दगी.... ईश्वर की नेमत समझकर |
रोना क्या रोना जिन्दगी का लाचार मजलूम बनकर|
रखना सदा उड़ान ऊँची हौंसलों की...वितान बनकर |
जीवन तो वैसे सबका है तुम जीना मिसाल बनकर |

-------------------अलका गुप्ता ---------------------
-----------------समर्पिता -----------------

भ्रमित मन क्यूँ हो रहा व्यथित आज !
क्यूँ आकुल....तू आंचल रही सम्भाल !
नाम समर्पिता कर दे.. तू सार्थक आज !
यही प्रीत ... कली का.. नेत्र उन्मीलन है !
पगली !...यही समझ ले..... तू आज !
झूकी हैं पलकें...क्यूँ कपोल रक्त से लाल !
ढके जो .... यौवन के ...... अवगुंठन से !
त्याग उसे तू ! .... कर ले .... स्वीकार !
यही मधुप है ! .. यही उसका प्रणय -गान !
ओ प्रेयसी ! देकर उसको ..... जीवनदान !
चलो ! चलें...... उस क्षितिज ... के पास !
एकांत की .... मधुर वीणा .... ले साथ !
सुमधुर भाव के... झंकृत हो ... तार-तार !
झूम उठेंगे.. मधुर मिलन के .. सुर-ताल !
महक तभी .. उठेगा ..सारा .. यह संसार |
न ... थकित से .... विमुग्ध ..... भाव से !
एक हो जाएंगे .... ये ..... प्राण-प्राण !
चंदा ... तारे ... वन ... उपवन ... सब !
गाएंगे ... पुलकित हो ! ... मंगल -गान !!
------------------अलका गुप्ता ------------------