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शनिवार, 3 मई 2014

पत्थरों ने.....यूँ कहा

कहा ..यूँ ..
उस.. संगतराश से..
मरमरी... उन पत्थरों ने||

चाहें ..कितनी ही...
हथौड़ी ..या.. छेनी...
तू चला ||

घाव जो..
रिसने लगें ...
हर आह ! पे ...
गीत उगने लगें ||

शेर कहने की तमन्ना...
पत्थरों के दिल में हैं ||

आज वह ...
दर्द-ए-ग़जल में...
पिघलने लगें ||

---------अलका गुप्ता ----------

गुरुवार, 2 जनवरी 2014

नव वर्ष है

नव वर्ष है !
नव संचार सब !
नव गीत हों !

फिर प्रसार ...
कृपा अपरम्पार ...
ईश दे साथ ...

हों दूर विघ्न !
खुलें उन्नति द्वार !
भरे उल्लास !

हर्षित होवें !
धन धन्य से पूर्ण !
ले सद्विचार !

------------अलका गुप्ता ---------------

रविवार, 1 दिसंबर 2013

जिन्दगी


-----जिन्दगी----

दर्दे सैलाब में डुबकियाँ लगाती रही जिन्दगी |

नश्तर कभी काँटे भी ...चुभाती रही जिन्दगी |
हँसती रही...जिन्दगी..उड़ा कर हँसी बेशर्म सी...
रौशनी सी दिखी...कभी जलाती रही जिन्दगी ||

-----------------अलका गुप्ता -------------------