पत्थरों ने.....यूँ कहा
कहा ..यूँ ..
उस.. संगतराश से..
मरमरी... उन पत्थरों ने||
चाहें ..कितनी ही...
हथौड़ी ..या.. छेनी...
तू चला ||
घाव जो..
रिसने लगें ...
हर आह ! पे ...
गीत उगने लगें ||
शेर कहने की तमन्ना...
पत्थरों के दिल में हैं ||
आज वह ...
दर्द-ए-ग़जल में...
पिघलने लगें ||
---------अलका गुप्ता ----------
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें