चले थे इसी जुस्तजू में |
कोई किनारा ना मिला ||
इस कदर भटके भंवर में |
कोई सहारा ना मिला ||
डूबती नैय्या सफर में |
कोई माँझी ना मिला ||
हवाओं की जुस्तजू में |
साधता मस्तूल ना मिला ||
तिश्नगी मिटती कहाँ ..
कफ़स -ए-रवायत में ||
मशरूफ हैं ..तड़पाने में |
जो अश्के लहू ना मिला ||
जिन्दा हैं वो उसी कारबार में |
कम कफ़न से दाम ना मिला ||
-----------अलका गुप्ता ----------
कोई किनारा ना मिला ||
इस कदर भटके भंवर में |
कोई सहारा ना मिला ||
डूबती नैय्या सफर में |
कोई माँझी ना मिला ||
हवाओं की जुस्तजू में |
साधता मस्तूल ना मिला ||
तिश्नगी मिटती कहाँ ..
कफ़स -ए-रवायत में ||
मशरूफ हैं ..तड़पाने में |
जो अश्के लहू ना मिला ||
जिन्दा हैं वो उसी कारबार में |
कम कफ़न से दाम ना मिला ||
-----------अलका गुप्ता ----------
आदरणीया अलका जी, सादर नमन! सुन्दर अभिव्यक्ति!
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