कहाँ है सोन चिरैया मेरी ओ ! गौरैया तू |
फुदकती थी मटकती थी बिटिया मेरी तू |
मौन है आँगन मेरा.....आज उदास क्यूँ |
मचलती नहीं लिपटती नहीं ललिया क्यूँ ||
आज माहोल में समाई इतनी दहशत है क्यूँ |
राक्षसी आहट है संस्कारों में या दरिंदा कोई |
मैं बेचारा ! इतना लाचार सा हो रहा हूँ क्यूँ |
मैं संस्कृति हूँ ! भारत की छवि बलत्कृत ज्यूँ ||
------------------अलका गुप्ता --------------------
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