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गरीबी में छिपा है तमाम ये हुनर हमारा|
मेरे आविष्कार की जननी है आवश्यकता ||
रोकर दौलत के लिए समय यूँ ही खोते नहीं |
भरोषा मेहनत का हम जाया करते नहीं ||
अपनी मेहनत के बल पे दुनिया सजा दी |
ना मिला फिर भी दो रोटी के सिवा कुछ भी ||
हौसले बुलंद हों तो मुश्किल कुछ भी नहीं |
नीला आकाश तो अपना है पूरी धरती नहीं ||
हाँ हम खुश हैं सडकों पर यूँ ही जीकर |
पन्नी और टाट की झुग्गियों में रहकर ||
तुम जैसी हमें दौलत की मारामारी नहीं |
हम खुश हैं यूँ ही हमें इतनी मुश्किल नहीं ||
---------------अलका गुप्ता ------------------
मेरे आविष्कार की जननी है आवश्यकता ||
रोकर दौलत के लिए समय यूँ ही खोते नहीं |
भरोषा मेहनत का हम जाया करते नहीं ||
अपनी मेहनत के बल पे दुनिया सजा दी |
ना मिला फिर भी दो रोटी के सिवा कुछ भी ||
हौसले बुलंद हों तो मुश्किल कुछ भी नहीं |
नीला आकाश तो अपना है पूरी धरती नहीं ||
हाँ हम खुश हैं सडकों पर यूँ ही जीकर |
पन्नी और टाट की झुग्गियों में रहकर ||
तुम जैसी हमें दौलत की मारामारी नहीं |
हम खुश हैं यूँ ही हमें इतनी मुश्किल नहीं ||
---------------अलका गुप्ता ------------------
बहुत सुन्दर मार्मिक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद
हटाएंआपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 23/02/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद
हटाएंmarmik abhiwyakti
जवाब देंहटाएंदर्द भरी रचना इस समाज में आपके इस दर्द का कोई इलाज नहीं अलका जी
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह
बेहतरीन .......
जवाब देंहटाएंआप भी पधारो स्वागत है ...
pankajkrsah.blogspot.com
जी जरुर .........हार्दिक धन्यवाद
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