उस क्षण मन था मेरा परेशान अजब हैरान |
विकट निराशा पनप रही थी मन था वीरान |
ढूंढ रहा था कोना एक कहीं एकांत सूनसान |
लगने लगा वह साहिल अपना नदी वेग ऊफान |
खोया था मन सुलझाने में अंतर्मन के गुम्फन |
टूटी तंद्रा अठखेलियों से राज हंस के शब्द सुन|
पिघल गए अवसाद पर्वत मुग्ध विस्फारित नयन|
देख प्रकृति के प्रेम सिंचित विलक्षण अद्दभुत क्षन |
टूटने लगे अहं के मिथ्या.....ये कुंठित अवगुंठन |
राज हंस हों अभिमंत्रित मंत्र प्रकृति से मुग्ध मन ||
---------------------अलका गुप्ता ----------------------
विकट निराशा पनप रही थी मन था वीरान |
ढूंढ रहा था कोना एक कहीं एकांत सूनसान |
लगने लगा वह साहिल अपना नदी वेग ऊफान |
खोया था मन सुलझाने में अंतर्मन के गुम्फन |
टूटी तंद्रा अठखेलियों से राज हंस के शब्द सुन|
पिघल गए अवसाद पर्वत मुग्ध विस्फारित नयन|
देख प्रकृति के प्रेम सिंचित विलक्षण अद्दभुत क्षन |
टूटने लगे अहं के मिथ्या.....ये कुंठित अवगुंठन |
राज हंस हों अभिमंत्रित मंत्र प्रकृति से मुग्ध मन ||
---------------------अलका गुप्ता ----------------------
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति,आभार.
जवाब देंहटाएंनज़रों ने नज़रों से नजरें मिलायीं
प्यार मुस्कराया और प्रीत मुस्कराई
प्यार के तराने जगे गीत गुनगुनाने लगे
फिर मिलन की ऋतू आयी भागी तन्हाई
दिल से फिर दिल का करार होने लगा
खुद ही फिर खुद से क्यों प्यार होने लगा
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आभार आपका .......
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