हमारे ब्लॉग में जीवन और सामाजिक मुद्दों पर मेरे कुछ प्रेरक उदगार है मुझे पूरा विश्वास है कि वह आपको भी अपने अंदाज में अवश्य छू पाएंगे, क्योंकि यदि आप सहृदय हैं.तब वह आपकी भी अनुभूतियाँ अवश्य ही हैं.
रविवार, 24 फ़रवरी 2013
शनिवार, 23 फ़रवरी 2013
---------------पत्ती ------------
वृक्ष की शान पे हमेशा मुस्कराई पत्ती |
द्रवित हुई विछड़ कर वृक्ष से गिरी पती |
हवा ने भी खूब इधर-उधर नचाई पत्ती |
हाल पर अपने विचलित छटपटाई पत्ती |
तभी वृक्ष ने वहीँ से आस जगाई उसकी |
थी अभी तक मेरा जीवन आधार तू पत्ती !
व्यर्थ न जीवन अब भी, तू क्यूँ उदास पत्ती |
अब भी करेगी इस सृष्टि का तू उद्धार पत्ती |
निराशा मे रोना मत कर आशा संचार पत्ती|
हर प्राणी के जीवन का...है तू आधार पत्ती |
सजाना सँवारना या खाद बन मिटटी बनना|
उद्देश्य हो फिर से इस सृष्टि का उद्धार करना |
मुस्कराई ..समझ गई यह जीवन -सार पत्ती |
करेगी अर्पण ये जीवन सृष्टि कल्याण हेतु पत्ती ||
------------------अलका गुप्ता ---------------------
वृक्ष की शान पे हमेशा मुस्कराई पत्ती |
द्रवित हुई विछड़ कर वृक्ष से गिरी पती |
हवा ने भी खूब इधर-उधर नचाई पत्ती |
हाल पर अपने विचलित छटपटाई पत्ती |
तभी वृक्ष ने वहीँ से आस जगाई उसकी |
थी अभी तक मेरा जीवन आधार तू पत्ती !
व्यर्थ न जीवन अब भी, तू क्यूँ उदास पत्ती |
अब भी करेगी इस सृष्टि का तू उद्धार पत्ती |
निराशा मे रोना मत कर आशा संचार पत्ती|
हर प्राणी के जीवन का...है तू आधार पत्ती |
सजाना सँवारना या खाद बन मिटटी बनना|
उद्देश्य हो फिर से इस सृष्टि का उद्धार करना |
मुस्कराई ..समझ गई यह जीवन -सार पत्ती |
करेगी अर्पण ये जीवन सृष्टि कल्याण हेतु पत्ती ||
------------------अलका गुप्ता ---------------------
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बुधवार, 20 फ़रवरी 2013
alkabharti1962@yahoo.com
गरीबी में छिपा है तमाम ये हुनर हमारा|
मेरे आविष्कार की जननी है आवश्यकता ||
रोकर दौलत के लिए समय यूँ ही खोते नहीं |
भरोषा मेहनत का हम जाया करते नहीं ||
अपनी मेहनत के बल पे दुनिया सजा दी |
ना मिला फिर भी दो रोटी के सिवा कुछ भी ||
हौसले बुलंद हों तो मुश्किल कुछ भी नहीं |
नीला आकाश तो अपना है पूरी धरती नहीं ||
हाँ हम खुश हैं सडकों पर यूँ ही जीकर |
पन्नी और टाट की झुग्गियों में रहकर ||
तुम जैसी हमें दौलत की मारामारी नहीं |
हम खुश हैं यूँ ही हमें इतनी मुश्किल नहीं ||
---------------अलका गुप्ता ------------------
मेरे आविष्कार की जननी है आवश्यकता ||
रोकर दौलत के लिए समय यूँ ही खोते नहीं |
भरोषा मेहनत का हम जाया करते नहीं ||
अपनी मेहनत के बल पे दुनिया सजा दी |
ना मिला फिर भी दो रोटी के सिवा कुछ भी ||
हौसले बुलंद हों तो मुश्किल कुछ भी नहीं |
नीला आकाश तो अपना है पूरी धरती नहीं ||
हाँ हम खुश हैं सडकों पर यूँ ही जीकर |
पन्नी और टाट की झुग्गियों में रहकर ||
तुम जैसी हमें दौलत की मारामारी नहीं |
हम खुश हैं यूँ ही हमें इतनी मुश्किल नहीं ||
---------------अलका गुप्ता ------------------
हौसलों की उड़ान थी...मासूम सी कल्पनाओं में ।
कत्ल हो गए अरमान हिंसक इन वियावानों में ।
हँसती रहीं खुदगर्ज ऐय्याशियां स्याह नकाबों में ।
दुनिया वीभत्स इतनी हरगिज न थी उस सोच में।
----------------अलका गुप्ता --------------------alkabharti1962@yahoo.com
कत्ल हो गए अरमान हिंसक इन वियावानों में ।
हँसती रहीं खुदगर्ज ऐय्याशियां स्याह नकाबों में ।
दुनिया वीभत्स इतनी हरगिज न थी उस सोच में।
----------------अलका गुप्ता --------------------alkabharti1962@yahoo.com
मशगूल न हो जाइए !
देखिए इधर भी ....
आह !! हैं हम बदनसीब सी ।
तड़फ इक बेचैन सी ।
सिसकी दर्दनाक भी ।
किसी इन्सान या बेजुवान की ।
फर्क कुछ नही!!
बस !!! चाहिए ध्यान ।
आपका .............।
इक निगाह तो उठा !
हाथ उठें ना बेशक ....
बस एक हांक तो लगा !!
दौड़ कर आएगा ...........
कोई जरुर .........
कि अभी इंसानियत ,
पूरी मरी भी नहीं !!
पूरी मरी भी नहीं !!
----अलका गुप्ता ---
देखिए इधर भी ....
आह !! हैं हम बदनसीब सी ।
तड़फ इक बेचैन सी ।
सिसकी दर्दनाक भी ।
किसी इन्सान या बेजुवान की ।
फर्क कुछ नही!!

बस !!! चाहिए ध्यान ।
आपका .............।
इक निगाह तो उठा !
हाथ उठें ना बेशक ....
बस एक हांक तो लगा !!
दौड़ कर आएगा ...........
कोई जरुर .........
कि अभी इंसानियत ,
पूरी मरी भी नहीं !!
पूरी मरी भी नहीं !!
----अलका गुप्ता ---
उस क्षण मन था मेरा परेशान अजब हैरान |
विकट निराशा पनप रही थी मन था वीरान |
ढूंढ रहा था कोना एक कहीं एकांत सूनसान |
लगने लगा वह साहिल अपना नदी वेग ऊफान |
खोया था मन सुलझाने में अंतर्मन के गुम्फन |
टूटी तंद्रा अठखेलियों से राज हंस के शब्द सुन|
पिघल गए अवसाद पर्वत मुग्ध विस्फारित नयन|
देख प्रकृति के प्रेम सिंचित विलक्षण अद्दभुत क्षन |
टूटने लगे अहं के मिथ्या.....ये कुंठित अवगुंठन |
राज हंस हों अभिमंत्रित मंत्र प्रकृति से मुग्ध मन ||
---------------------अलका गुप्ता ----------------------
विकट निराशा पनप रही थी मन था वीरान |
ढूंढ रहा था कोना एक कहीं एकांत सूनसान |
लगने लगा वह साहिल अपना नदी वेग ऊफान |
खोया था मन सुलझाने में अंतर्मन के गुम्फन |
टूटी तंद्रा अठखेलियों से राज हंस के शब्द सुन|
पिघल गए अवसाद पर्वत मुग्ध विस्फारित नयन|
देख प्रकृति के प्रेम सिंचित विलक्षण अद्दभुत क्षन |
टूटने लगे अहं के मिथ्या.....ये कुंठित अवगुंठन |
राज हंस हों अभिमंत्रित मंत्र प्रकृति से मुग्ध मन ||
---------------------अलका गुप्ता ----------------------
सोमवार, 4 फ़रवरी 2013
हमारी पृथ्वी
सभी ग्रहों में है सबसे न्यारी ! हमारी धरती |
पृथ्वी तो माँ है और हमारा घर भी है धरती ||
गोल-मटोल धरा ये भण्डार अति...बसुन्धरा |
दिखती अंतरीक्ष से सुन्दर नीली हरी धरती||
स्वार्थ में अंधे हो अति दोहन कर रहे मानव |
भूल गए पालती पालने में लाड़ से माँ धरती ||
काटते पेड़ों को देते जो हमें जीवन...प्राण वायु |
छाँटकर पहाड़ों को नदी की धार में बाँध धरती ||
भूल ना गर्व में चूर मानव भवन देख गगनचुम्बी !
भूकंप कभी ज्यालामुखी से फुफकार उठेगी धरती ||
सच में माता है ये 'हमारी' ....भाग्यविधाता धरती |
उजाड़ ना हरियाला आँचल माँ के बाद है माँ धरती ||
--------------------अलका गुप्ता ----------------------
पृथ्वी तो माँ है और हमारा घर भी है धरती ||
गोल-मटोल धरा ये भण्डार अति...बसुन्धरा |
दिखती अंतरीक्ष से सुन्दर नीली हरी धरती||
स्वार्थ में अंधे हो अति दोहन कर रहे मानव |
भूल गए पालती पालने में लाड़ से माँ धरती ||
काटते पेड़ों को देते जो हमें जीवन...प्राण वायु |
छाँटकर पहाड़ों को नदी की धार में बाँध धरती ||
भूल ना गर्व में चूर मानव भवन देख गगनचुम्बी !
भूकंप कभी ज्यालामुखी से फुफकार उठेगी धरती ||
सच में माता है ये 'हमारी' ....भाग्यविधाता धरती |
उजाड़ ना हरियाला आँचल माँ के बाद है माँ धरती ||
--------------------अलका गुप्ता ----------------------
अलका भारती: मन के कुछ आक्रोशित भाव ..........
अलका भारती: मन के कुछ आक्रोशित भाव ..........: मन के कुछ आक्रोशित भाव .......... हौसले अरमान सभी होंगे पूरे एक दिन इक आस थी | समेट लुंगी बाहों में खुशियाँ सारी यही इक आस थी || तोड़ क...
मंगलवार, 29 जनवरी 2013
क्या नहीं किया .... हमने ?
भगवान पृथक किए उनके अपने |
अछूत तब कहाँ थे जब -
छीना उनका हिस्सा हमने |
दोषी हम .... उन्हें दोष दिया |
सेवा की .......... जिन्होंने |
जो करते रहे त्याग ...........|
उन्हें अपने से अलग किया |
और कहा उन्हें अछूत |
अछूत तो हम हैं |
जिन्हें है छूत का डर |
क्यों कि वह तो हैं..... अ - छूत ||
-------------अलका गुप्ता -------------
भगवान पृथक किए उनके अपने |
अछूत तब कहाँ थे जब -
छीना उनका हिस्सा हमने |
दोषी हम .... उन्हें दोष दिया |
सेवा की .......... जिन्होंने |
जो करते रहे त्याग ...........|
उन्हें अपने से अलग किया |
और कहा उन्हें अछूत |
अछूत तो हम हैं |
जिन्हें है छूत का डर |
क्यों कि वह तो हैं..... अ - छूत ||
-------------अलका गुप्ता -------------
सोमवार, 28 जनवरी 2013
कुछ भाव बचपन के लिए
--------------------------
मैं राही.....एक बचपन का |
निश्चिन्त मासूम सा बच्चा हूँ |
मम्मा पापा ने दुलराया भी|
प्यार से खूब सहलाया भी||
आज मैं नारज कुछ हूँ |
जिद में मचला बहुत हूँ |
तंग करने का इरादा है |
यहाँ एकांत में आया हूँ ||
ढूंढेगे जब परेशान होकर |
होगी माँगपूरी कुर्बान होकर
मैं क्यूँ करूँ चिंता बच्चा हूँ !
करूँ क्या मन का सच्चा हूँ !!
-------अलका गुप्ता --------
------------------------------------------------------
मैं बचपन ! अनजान निश्चिन्त राह का पथिक एक |
मैं ढलता ! हसरतों की सीढियाँ चढ़ता हर पल अनेक |
रूठता मचलता झिझकता हंसता चहकता अबोध सा |
जैसे मिटटी हो कुम्हार की निराकार गीला लौंदा एक ||
-------------------अलका गुप्ता----------------------------
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मैं राही.....एक बचपन का |
निश्चिन्त मासूम सा बच्चा हूँ |
मम्मा पापा ने दुलराया भी|
प्यार से खूब सहलाया भी||
आज मैं नारज कुछ हूँ |
जिद में मचला बहुत हूँ |
तंग करने का इरादा है |
यहाँ एकांत में आया हूँ ||
ढूंढेगे जब परेशान होकर |
होगी माँगपूरी कुर्बान होकर
मैं क्यूँ करूँ चिंता बच्चा हूँ !
करूँ क्या मन का सच्चा हूँ !!
-------अलका गुप्ता --------
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मैं बचपन ! अनजान निश्चिन्त राह का पथिक एक |
मैं ढलता ! हसरतों की सीढियाँ चढ़ता हर पल अनेक |
रूठता मचलता झिझकता हंसता चहकता अबोध सा |
जैसे मिटटी हो कुम्हार की निराकार गीला लौंदा एक ||
-------------------अलका गुप्ता----------------------------
शुक्रवार, 4 जनवरी 2013
बंधनों की झूठी लाज
तन -मन भिगो रही आज ...
यादों की हरश्रंगारी महक ।
अल्हड उन बतियों की चहक ।
ढलकी - ढलकी चितवन ये ।
रूखे अधरों का कंपन ये ।
बिखर गई अलकों में ...
बीते दिनों की राख सी ...
सिमट गई लाली जो ...
झुर्रियों में अनायास ही ...
कसक बहुत रही है आज ।
जो तोड़ ना सके थे कायर हाथ ।
उन बीते दिनों के अनचाहे ...
बंधनों की झूठी लाज ।।
---------अलका गुप्ता ----------
यादों की हरश्रंगारी महक ।
अल्हड उन बतियों की चहक ।
ढलकी - ढलकी चितवन ये ।
रूखे अधरों का कंपन ये ।
बिखर गई अलकों में ...
बीते दिनों की राख सी ...
सिमट गई लाली जो ...
झुर्रियों में अनायास ही ...
कसक बहुत रही है आज ।
जो तोड़ ना सके थे कायर हाथ ।
उन बीते दिनों के अनचाहे ...
बंधनों की झूठी लाज ।।
---------अलका गुप्ता ----------
---वह कौन थी---
---वह कौन थी---
आँखों में आंसू ,
हाय ! गले में फंदा |
आग ही आग थी ..
जल गयी वह ..
या जलाई गई ?
वह कौन थी ?
समझ गए आप ..ना !!
आप की सताई हुई |
रोती थी घबराई सी ,
या घुटन ही घुटन मिली |
लुट गए वसन जिसके ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप.. ना !!
बोलियाँ लगाई थीं ,
रात्रि के अंधेरों में |
लुट गई जो ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप ..ना !!
दिन के उजालों में ..
आपने बहन कहा |
सताई हुई जब मरी ,
घढ़ियाली आंसू बहाए..
आप ही आप ने |
मर गई जो ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप .. ना !!
मांगी थी इज्जत की ...
भीख जिसने ....
हँसे थे कितना आप तब |
आश्चर्य !!! भूल गए..
क्या ??? आप सब |
आपकी सताई हुई ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप ..ना !!
वह कौन थी ?
-----अलका गुप्ता -----
आँखों में आंसू ,
हाय ! गले में फंदा |
आग ही आग थी ..
जल गयी वह ..
या जलाई गई ?
वह कौन थी ?
समझ गए आप ..ना !!
आप की सताई हुई |
रोती थी घबराई सी ,
या घुटन ही घुटन मिली |
लुट गए वसन जिसके ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप.. ना !!
बोलियाँ लगाई थीं ,
रात्रि के अंधेरों में |
लुट गई जो ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप ..ना !!
दिन के उजालों में ..
आपने बहन कहा |
सताई हुई जब मरी ,
घढ़ियाली आंसू बहाए..
आप ही आप ने |
मर गई जो ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप .. ना !!
मांगी थी इज्जत की ...
भीख जिसने ....
हँसे थे कितना आप तब |
आश्चर्य !!! भूल गए..
क्या ??? आप सब |
आपकी सताई हुई ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप ..ना !!
वह कौन थी ?
-----अलका गुप्ता -----
बलत्कृत
कहाँ है सोन चिरैया मेरी ओ ! गौरैया तू |
फुदकती थी मटकती थी बिटिया मेरी तू |
मौन है आँगन मेरा.....आज उदास क्यूँ |
मचलती नहीं लिपटती नहीं ललिया क्यूँ ||
आज माहोल में समाई इतनी दहशत है क्यूँ |
राक्षसी आहट है संस्कारों में या दरिंदा कोई |
मैं बेचारा ! इतना लाचार सा हो रहा हूँ क्यूँ |
मैं संस्कृति हूँ ! भारत की छवि बलत्कृत ज्यूँ ||
------------------अलका गुप्ता --------------------
फुदकती थी मटकती थी बिटिया मेरी तू |
मौन है आँगन मेरा.....आज उदास क्यूँ |
मचलती नहीं लिपटती नहीं ललिया क्यूँ ||
आज माहोल में समाई इतनी दहशत है क्यूँ |
राक्षसी आहट है संस्कारों में या दरिंदा कोई |
मैं बेचारा ! इतना लाचार सा हो रहा हूँ क्यूँ |
मैं संस्कृति हूँ ! भारत की छवि बलत्कृत ज्यूँ ||
------------------अलका गुप्ता --------------------
शनिवार, 29 दिसंबर 2012
(१) हौसलों की उड़ान
झुर्रियाँ जब मुस्काने लगें |
दीवानों की तरह |
दीवानों की तरह |
साथ तुम देना ...दिल
परवानों की तरह ||
परवानों की तरह ||
वक्त जब यादों में ....
इतिहास के ढलने लगे |
इतिहास के ढलने लगे |
अरमान तुम मन को
समझा लेना संभल कर ||
समझा लेना संभल कर ||
तारे जमीं पर ....
रूठने लगें जब |
रूठने लगें जब |
हौंसलों उड़ान तुम ....
भर देना आसमानों में ||
समेटने लगे मौत भी जब
आगोश में ...."अलका" |
आगोश में ...."अलका" |
गीत जिन्दगी के .....
गुनगुना लेना तुम हँसकर ||
(२) शब्द
शब्द अनायास ही दौड़ने लगे ।
क्यूँ कभी मन को कचोटने लगे ।
बांध ह्रदय का उमड़ने लगा |
घटा अचानक बरसने लगी ।
तीर से शब्द कभी चुभने लगे ।
घाव गंभीर करने लगे ....।
तीर से शब्द कभी चुभने लगे ।
घाव गंभीर करने लगे ....।
व्यथा बन नदी सी बहने लगे
अधीर हो सागर में ज्वार से...
मन को उफनाने लगे.....।
अधीर हो सागर में ज्वार से...
मन को उफनाने लगे.....।
क्या करिश्मा शब्द का जो...
शांत मन ..कभी स्थिर सा ।
कभी हंसाने गुदगुदाने लगे ।
शांत मन ..कभी स्थिर सा ।
कभी हंसाने गुदगुदाने लगे ।
जब भरे जोश में ....तो....
देश हित.... में योद्धा .....
जान अपनी ....लुटाने लगे ।
देश हित.... में योद्धा .....
जान अपनी ....लुटाने लगे ।
मंगलवार, 25 दिसंबर 2012
सोमवार, 24 दिसंबर 2012
मन के कुछ आक्रोशित भाव ..........
मन के कुछ आक्रोशित भाव ..........
हौसले अरमान सभी होंगे पूरे एक दिन इक आस थी |
समेट लुंगी बाहों में खुशियाँ सारी यही इक आस थी ||
तोड़ कर झिझोड़ दिया क्यूँ.......इतनी वहशत से |
देखे दुनियाँ तमाशबीन सी ना मन को ये आस थी ||
टूट गई हूँ ...विकल विवश सी मन में इतनी दहशत है |
शर्म करो उफ्फ !!! प्रश्नों से..जिनकी ना कोई आस थी ||
घूम रहे स्वच्छंद अपराधी देखो !!! भेड़िये की खाल में |
बन गई अपराधिनी...मैं ही कैसे..इसकी ना आस थी ||
मानवता से करूँ घृणा या देखूं हर मन को संशय भर |
रक्षक समझी थी ना विशवासघात की मन को आस थी ||
मिलती नहीं सजा क्यूँ....समझ ना पाय 'अलका' यह |
इन घावों की सजा दे कोई...जिसकी दिल को आस थी ||
---------------------अलका गुप्ता ---------------------------
हौसले अरमान सभी होंगे पूरे एक दिन इक आस थी |
समेट लुंगी बाहों में खुशियाँ सारी यही इक आस थी ||
तोड़ कर झिझोड़ दिया क्यूँ.......इतनी वहशत से |
देखे दुनियाँ तमाशबीन सी ना मन को ये आस थी ||
टूट गई हूँ ...विकल विवश सी मन में इतनी दहशत है |
शर्म करो उफ्फ !!! प्रश्नों से..जिनकी ना कोई आस थी ||
घूम रहे स्वच्छंद अपराधी देखो !!! भेड़िये की खाल में |
बन गई अपराधिनी...मैं ही कैसे..इसकी ना आस थी ||
मानवता से करूँ घृणा या देखूं हर मन को संशय भर |
रक्षक समझी थी ना विशवासघात की मन को आस थी ||
मिलती नहीं सजा क्यूँ....समझ ना पाय 'अलका' यह |
इन घावों की सजा दे कोई...जिसकी दिल को आस थी ||
---------------------अलका गुप्ता ---------------------------
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