शीर्षक_झमेला भूख का
जन्म से मृत्यु पर्यन्त इसे
झेला ही झेला है ।
भूख है जिंदा भूख का ही
सारा झमेला है ॥
टूट गई कमर..उम्र की
दोहरी हुई बेशक...
उड़ गए परिंदे..मुकाम पर
कब्र की..तू अकेला है ॥
आग है यही दोजख की
ऐ ख़ुदा तूने ही धकेला है।
कोई नहीं किसी का...
हर कोई यहाँ अकेला है ॥
बुझ गई आज..कल का
फ़िर यही झमेला है।
धरें आधार कर्म के..जुड़े
विधि विधान ये मेला है ॥
तुझे न मुझे ..ले जाना...
हाथ नहीं एको धेला है ।
हैं पेट के ताम झाम..चले
इसी पे..सारा खेला है ॥
______अलका गुप्ता 'भारती'__