बुधवार, 31 दिसंबर 2014

अलविदा ! .....2014........!!!
नव वर्ष की बहुत-बहुत हार्दिक शुभ-कामनाएँ !!!
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
नव वर्ष है !
नव संचार सब !
नव गीत हों !
फिर प्रसार ...!
कृपा अपरम्पार ...!
दे ईश साथ ...!
हों दूर विघ्न !
खुलें उन्नति द्वार !
भरे उल्लास !
हर्षित होवें !
धन धन्य से पूर्ण !
ले सद्विचार !
---------‪#‎अलका‬ गुप्ता ----------

बुधवार, 17 दिसंबर 2014

अलका भारती: इंसानियत के कातिल

अलका भारती: इंसानियत के कातिल: घात ये इन्सानियत के कातिलों के | रिसते रहंगे घाव घातक घायलों के | दहलें दिल दहशते दारुण आघात से.. धर्म है पीना लहू लाल-लाल लालों ...

इंसानियत के कातिल




घात ये इन्सानियत के कातिलों के |
रिसते रहंगे घाव घातक घायलों के |
दहलें दिल दहशते दारुण आघात से..
धर्म है पीना लहू लाल-लाल लालों के ||

---------------अलका गुप्ता------------

शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2014

चित्र की प्रेरणा से उभरे ये भाव ---सादर आपके सम्मुख हैं साथियों !!!--  

फूट पड़ी वो.. ठूँठ शजर की.. डूब रही ...जो डाली है |
छटा मनोरम आँजती झूमें प्रकृति इशारे मतवाली है|
रूप अनुपम आँकता प्रतिबिम्ब सच्चिदानंद निरंतर...
अद्भुत आतुर जीजिविषा में..हो निमग्न हरियाली है ||
----------------------अलका‬ गुप्ता---------------------


बुधवार, 22 अक्तूबर 2014

प्रेम ज्योति

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ..!!!  

आशीष माँ शारदे संग कृपा लक्ष्मी-गणेश की भी पा जाएँ |
सद-बुद्धि शुभ-लाभ संग मानवता ये प्रकाशित कर पाएँ ||
ज्योति से ज्योति...मिलकर आओ प्रज्वलित कर जाएँ |
समिधा सी ..द्वंद सारे ..अंतर्मन के..बलिवेदी पर चढाएँ ||
भूलकर वैमनष्य भाव सारे परस्पर प्रेम ज्योति जलाएँ |
बाँटकर सब ओर उजाला मोम से हम बेशक पिघल जाएँ ||
अंधकार दूर धरा से ..अज्ञान ये सारा डटकर दूर भगाएँ |
आलोकित कर मानवता को नया सा इतिहास लिख जाएँ ||

----------------------अलका गुप्ता------------------------


मंगलवार, 23 सितंबर 2014

अलका भारती: छाँव

अलका भारती: छाँव: छाँव अपनी देकर जीवन आसमान कर लूँगा | लगाके हृदय से तुझे पूर्ण अरमान कर लूँगा | पुष्पांजलि भर ..वत्सल माधुर्य भाव तेरे .. पाकर बिटिया जीवन य...

छाँव

छाँव अपनी देकर जीवन आसमान कर लूँगा |
लगाके हृदय से तुझे पूर्ण अरमान कर लूँगा |
पुष्पांजलि भर ..वत्सल माधुर्य भाव तेरे ..
पाकर बिटिया जीवन ये अभिमान कर लूँगा ||
-------------------अलका गुप्ता---------------------


वीरानियाँ



वीरानियाँ हर तरफ सिसकती रहीं |
दिल हाथ में थाम कर तड़फती रही |
संजोए हुए वो हर लम्हें यादों के ...
बिखरे हुए आशियाने से ढूंडती रही ||
---------------अलका‬ गुप्ता--------------
Veeraaniyan har taraf sisakti rahin .
Dil haath men thaam kar tadafti rahin.
Sanjoe hue vo har lamjen yaadon ke ...
Bikhre hue aashiyaane se dhundati rahi .
-----------------------Alka Gupta----------------------

मंगलवार, 2 सितंबर 2014

अलका भारती: --गीतिका --मैं --क्यूँ जिल्लत में ..जी रही हूँ मैं...

अलका भारती: --गीतिका --मैं --क्यूँ जिल्लत में ..जी रही हूँ मैं...: --गीतिका --मैं -- क्यूँ जिल्लत में ..जी रही हूँ मैं | घूँट ..अपमान के.. पी रही हूँ मैं || ऐसी ..भी क्या ..लाचारी ..है | पाषाण शिला सी ..जी ...
--गीतिका --मैं --

क्यूँ जिल्लत में ..जी रही हूँ मैं |
घूँट ..अपमान के.. पी रही हूँ मैं ||

ऐसी ..भी क्या ..लाचारी ..है |
पाषाण शिला सी ..जी रही हूँ मैं ||

मन में ..व्याकुल ..तूफ़ान ..उठे हैं |
क्यूँ ..व्यर्थ ही उन्हें ..दबा रही हूँ मैं ||

शक्ति रूपा ...नारी हूँ ...
क्यूँ ..लाचार दिख रही हूँ मैं ||

संचरण हूँ.. मैं ..नव जीवन का
क्यूँ ..आवरण में ..ढक रही हूँ मैं ||

माँ हूँ ..मैं पालती ..संस्कृति को
फिर भी ..तौहीन ..सह रही हूँ मैं ||

बंधी हूँ ..बन्धनों में ..स्वयं ..
क्यूँ ..व्यर्थ ..छटपटा रहीं हूँ मैं ||

समर्पिता हूँ मैं ..संस्कारों में ..भी |
कलंकित ..फिर क्यूँ ..हो रही हूँ मैं ||

मैं देवी ..अबला ..बिटिया घर की |
क्यूँ फिर ..बाजार में ..बिक रही हूँ मैं ||

मानव हूँ ..मैं भी.. मानवता में
क्यूँ बलि अंकुशों के चढ़ रही हूँ मैं ||

हर रिश्ता मैंने ही सजाया संवारा है |
गालियों में कुंठा की दागी जा रही हूँ मैं ||

----------------अलका गुप्ता-------------------


--मुक्तक --

 भौंरा /मधुकर 

डोलता मधुकर..कली-कली |
चूमता भौंरा मदिर-मधु डली |
गुन-गुन गीत गुन्जारता मधुर ...
सार्थक प्रान मकरंद अलि कली ||

-------------अलका  गुप्ता---------------

शनिवार, 23 अगस्त 2014

मैं मैं करता मैं मरा ,सब कुछ यहाँ समाय |
मैं मारा..मन को जरा , तुझ में गया विलाय ||(१)

मेरा मुझको चाहिए , हक़ में जितना आय |
कायर सा भी क्या जियूँ ,हक़ अपना मरवाय ||(2)

-------------------अलका गुप्ता-------------------

अलका भारती: कहा ..यूँ ..उस.. संगतराश से..मरमरी... उन पत्थरों न...

अलका भारती: कहा ..यूँ ..उस.. संगतराश से..मरमरी... उन पत्थरों न...: कहा ..यूँ .. उस.. संगतराश से.. मरमरी... उन पत्थरों ने|| चाहें ..कितनी ही... हथौड़ी ..या.. छेनी... तू चला || घाव जो.. रिसने लगें ... हर आह ! ...

अलका भारती: अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |...

अलका भारती: अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |...: अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |धूमिल से वो ... : हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं | धूमिल से वो अक्स आँखों में गुजरते...

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शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

अलका भारती

अलका भारती--

वांचती सम्वेदनाएँ जो ...
बाँट देती सहेज कर वो ||



काहे का भय है काले विषधर नाग से|
डर है दिल काले जिन कपड़े झाग से |
डसलें स्वार्थी जो ..वतन की आन को ..
दुष्कर्मों से खेलें ...निर्दोषों के भाग से ||

--------------अलका गुप्ता----------------

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रविवार, 13 जुलाई 2014

नाजुक कली अभी खिली नहीं |
काँटों से बचके कभी चली नहीं |
भूखी है आरजू मासूम..राहों पर...
आहट..रोटी सी अभी मिली नहीं ||

------------- अलका गुप्ता----------------
 
मैं देवी..कोई पत्थर की मूरत नहीं |
राहों में पड़े.. कंकड़ की सूरत नहीं |
हैं अरमान जिन्दा..अहसासों में मेरे ..
हक़ में दाबेदार... क्या औरत नहीं ||

-------------अलका गुप्ता----------------

Main devi.. kaoi patthar ki moorat nahin.
Rahon men pade..kankad ki soorat nahin .
Hain armaan jinda ...ahsaaon men mere...
haq men daavedaar ..kya aurat nahin .

--------------------Alka Gupta--------------------

अलका भारती

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अलका भारती

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हमारी ख़ुशी का है आलम ये देखिए |
तिमंजली इस इमारत की शान देखिए |
सुकून का पल है ये कोई गर्दिश नहीं ...
रहने को ठिया है आज..न कम आंकिए ||

-----------------#अलका गुप्ता
-----------------

मंगलवार, 10 जून 2014

~~गाँव ~~


-----------(१)
गंध माटी की !
हरियाले से गाँव !
पेड़ों की छाँव !

-------------(2)

खुले हैं खेत !
हलधर किसान !
गोबर गाय !

---------------(३)

माँ के हाथों !
जीवन महकाए !
रोटी चूल्हे की !
|
-----अलका गुप्ता----
~~~~~तस्वीर ~~~~~


फाड़ कर यूँ तस्वीर हैरान हूँ |
हँसती रही यादें मैं वीरान हूँ |
तेरी बेवफ़ाइयों के सितम हैं ..
फिर भी क्यूँ ...मैं परेशान हूँ ||

----------अलका गुप्ता----------

Fad kar yun tasvir hairaan hun.
Hansti rahi yaaden main veeraan hun.
Teri bevafaaiyon ke sitam hain ...
Fir bhi kyun....main pareshaan hun .

--------------------Alka Gupta---------------

शनिवार, 3 मई 2014

पत्थरों ने.....यूँ कहा

कहा ..यूँ ..
उस.. संगतराश से..
मरमरी... उन पत्थरों ने||

चाहें ..कितनी ही...
हथौड़ी ..या.. छेनी...
तू चला ||

घाव जो..
रिसने लगें ...
हर आह ! पे ...
गीत उगने लगें ||

शेर कहने की तमन्ना...
पत्थरों के दिल में हैं ||

आज वह ...
दर्द-ए-ग़जल में...
पिघलने लगें ||

---------अलका गुप्ता ----------

अलका भारती: अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |...

अलका भारती: अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |...: अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |धूमिल से वो ... : हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं | धूमिल से वो अक्स आँखों में गुजरते...

अलका भारती: डरो बेशक ..मगर उसके सम्मान के हरण में ...करो ना ...

अलका भारती: डरो बेशक ..मगर उसके 
सम्मान के हरण में ...
करो ना ...
: डरो बेशक ..मगर उसके  सम्मान के हरण में ... करो ना सम्मान बेशक .. एक इंसान तो समझो | वरना हर पल वह ... अपने होने से ... देती सबको ही......

बुधवार, 23 अप्रैल 2014

अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |धूमिल से वो ...

अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |धूमिल से वो ...: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं | धूमिल से वो अक्स आँखों में गुजरते हैं | हम तो पड़े हैं उन्हीं राहों में ठोकरों तले ... जिनसे आज भी मु...

अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |धूमिल से वो ...

अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |धूमिल से वो ...: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं | धूमिल से वो अक्स आँखों में गुजरते हैं | हम तो पड़े हैं उन्हीं राहों में ठोकरों तले ... जिनसे आज भी मु...
हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |
धूमिल से वो अक्स आँखों में गुजरते हैं |
हम तो पड़े हैं उन्हीं राहों में ठोकरों तले ...
जिनसे आज भी मुस्करा कर वो गुजरते हैं ||

-----------------अलका गुप्ता ------------------

Hansin vaadon ke kisse aaj bhi larjte hain .
Dhumil se vo aks aankhon se gujarte hain .
Ham to pade hain unhin raahon men thokron tale ... 
Jinse aaj bhi muskra kar vo gujarte hain .

------------------------Alka Gupta--------------------------

रविवार, 23 मार्च 2014

चले थे इसी जुस्तजू में |
कोई किनारा ना मिला ||

इस कदर भटके भंवर में |
कोई सहारा ना मिला ||

डूबती नैय्या सफर में |
कोई माँझी ना मिला ||

हवाओं की जुस्तजू में |
साधता मस्तूल ना मिला ||

तिश्नगी मिटती कहाँ ..
कफ़स -ए-रवायत में ||

मशरूफ हैं ..तड़पाने में |
जो अश्के लहू ना मिला ||

जिन्दा हैं वो उसी कारबार में |
कम कफ़न से दाम ना मिला ||

-----------अलका गुप्ता ----------

सोमवार, 13 जनवरी 2014



चहकी न अब तक मधुशाला |
बहकी-बहकी चितवन बाला |
दहकी ना क्यूँ मन की ज्वाला |
भर दे तू साकी ! आज पियाला ||

जाम भी या क़दह भर जाएंगे |
डग-मग से कदम बहकाएंगे |
यहाँ - कभी - वहाँ गिर जाएँगे |
हालात वहके से नजर ना आएँगे ||

ये हाला है....कि इक ज्वाला है |
घर यूँ ही बेवजह जल जाएंगे |
होश गुम हो जाएँगे किसी के ....
जाम से जाम जब टकराएंगे ||

भरकर चषक...अरमान पी जाएंगे |
भूले रिश्ते...पान-पात्र से पी जाएंगे |
देखे हैं भूखे पेट या ये हैवान नशे में...
जद में घर जो श्मशान सा डराएंगे ||

ये चषक हैं मय के.....या चूषक |
मासूम रिश्ते-नातों के अवशोषक |
लुटती अस्मत उस मदहोशी के वश |
विस्मृती वश इंसान बने मात्र भक्षक ||

समझ ना पाऊं तेरा ये पीना और पिलाना |
अनियंत्रित भाषा वेश तेरा तू शराबी माना |
पेंदी बिन लोटे सा लुढका-लुढका घूम रहा |
इंसां रहे ना इंसां,तू पात्र हँसी का बेगाना ||

भूल जा गाना तू मधुशाला का बस |
सुनने में ही सुन्दर लगता है... बस |
ढलने में सबको ही... छलता है बस |
चषक पियाला पान-पात्र जाम क़दह..
जीवन से तू फेंक बाहर बहुत दूर बस ||

----------------अलका गुप्ता ----------------

गुरुवार, 2 जनवरी 2014




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जीवन के दिन......... ऐसे बीतें........जैसे दिखें गुलाब |
नव वर्ष की हार्दिक शुभ-कामनाएँ रहें सदा आपके साथ ||
===============================
आज मेरी एक बहुत ही पुरानी रचना आपके सम्मुख है ---

"उदास मैं !...उदास राहें चली "|
उजड़ी ..एक बगिया ..मिली |
मगर .....नहीं !
कली एक खिली मिली ...|
मुस्काती खिलखिलाती ...वह |
मैं ..उसके.. भाग्य से जली ||

पूँछा- ऐ अधखिली ..खिली कली !
दुःख ..क्या ..नहीं ....तुझे कोई ?
बोली वह - मुस्काती...इठलाती |
''मेरी बहना ....प्यारी -प्यारी !''
ढूंडती मैं ...दुखों में सुखों की लड़ी !
मारुति की ..मार से.... मैं झूमती !
छोडती न विश्व को ...|
शीत के आँसू जोडती ...|
ऋतुओं की हूँ ...अरविन्द मैं !
भौंरा है ..कितना ...मक्कार !
जानते यह ...सभी ...|
मगर ....नहीं..|
''मेरा तो...... जीवन सार वही !!"

अभी वह ...और कहती ...|
अभी वह ...और कहती ...|
मैं !...उसके भाग्य से जली |
तोड़ा ...झटके से ...!
अब ......... सूनी थी डाली !
मैं !...कुटिलता से हँसी !!

आया झोंका ...तेज वयार का |
टूटकर बिखर गई ....वह कली !
फिर से ...मैं !....हँस उठी |
तभी ...बिखरी पत्तियाँ चीख उठीं |
''देख ..!!!...क्या बिखरने से मेरे !
धरती ...!....नहीं सज उठी "|
मेरे लिए... फिर.... वही दास्तान |
"उदास मैं !....उदास राहें चलीं "||

---------------अलका गुप्ता----------------

नव वर्ष है

नव वर्ष है !
नव संचार सब !
नव गीत हों !

फिर प्रसार ...
कृपा अपरम्पार ...
ईश दे साथ ...

हों दूर विघ्न !
खुलें उन्नति द्वार !
भरे उल्लास !

हर्षित होवें !
धन धन्य से पूर्ण !
ले सद्विचार !

------------अलका गुप्ता ---------------