मंगलवार, 29 जनवरी 2013

क्या नहीं किया .... हमने ?
भगवान पृथक किए उनके अपने |
अछूत तब कहाँ थे जब -
छीना उनका हिस्सा हमने |
दोषी हम .... उन्हें दोष दिया |
सेवा की .......... जिन्होंने |
जो करते रहे त्याग ...........|
उन्हें अपने से अलग किया |
और कहा उन्हें अछूत |
अछूत तो हम हैं |
जिन्हें है छूत का डर |
क्यों कि वह तो हैं..... अ - छूत ||

-------------अलका गुप्ता -------------

सोमवार, 28 जनवरी 2013

कुछ भाव बचपन के लिए 
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मैं राही.....एक बचपन का |
निश्चिन्त मासूम सा बच्चा हूँ |
मम्मा पापा ने दुलराया भी|
प्यार से खूब सहलाया भी||

आज मैं नारज कुछ हूँ |
जिद में मचला बहुत हूँ |
तंग करने का इरादा है |
यहाँ एकांत में आया हूँ ||

ढूंढेगे जब परेशान होकर |
होगी माँगपूरी कुर्बान होकर
मैं क्यूँ करूँ चिंता बच्चा हूँ !
करूँ क्या मन का सच्चा हूँ !!

-------अलका गुप्ता --------
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मैं बचपन ! अनजान निश्चिन्त राह का पथिक एक |
मैं ढलता ! हसरतों की सीढियाँ चढ़ता हर पल अनेक |
रूठता मचलता झिझकता हंसता चहकता अबोध सा |
जैसे मिटटी हो कुम्हार की निराकार गीला लौंदा एक ||

-------------------अलका गुप्ता----------------------------

शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

बंधनों की झूठी लाज


तन -मन भिगो रही आज ...
यादों की हरश्रंगारी महक ।
अल्हड उन बतियों की चहक ।
ढलकी - ढलकी चितवन ये ।
रूखे अधरों का कंपन ये ।
बिखर गई अलकों में ...
बीते दिनों की राख सी ...
सिमट गई लाली जो ...
झुर्रियों में अनायास ही ...
कसक बहुत रही है आज ।
जो तोड़ ना सके थे कायर हाथ ।
उन बीते दिनों के अनचाहे ...
बंधनों की झूठी लाज ।।

---------अलका गुप्ता ----------
 

---वह कौन थी---


---वह कौन थी---

आँखों में आंसू ,
हाय ! गले में फंदा |
आग ही आग थी ..
जल गयी वह ..
या जलाई गई ?
वह कौन थी ?
समझ गए आप ..ना !!
आप की सताई हुई |
रोती थी घबराई सी ,
या घुटन ही घुटन मिली |
लुट गए वसन जिसके ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप.. ना !!
बोलियाँ लगाई थीं ,
रात्रि के अंधेरों में |
लुट गई जो ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप ..ना !!
दिन के उजालों में ..
आपने बहन कहा |
सताई हुई जब मरी ,
घढ़ियाली आंसू बहाए..
आप ही आप ने |
मर गई जो ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप .. ना !!
मांगी थी इज्जत की ...
भीख जिसने ....
हँसे थे कितना आप तब |
आश्चर्य !!! भूल गए..
क्या ??? आप सब |
आपकी सताई हुई ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप ..ना !!
वह कौन थी ?
-----अलका गुप्ता -----

बलत्कृत

कहाँ है सोन चिरैया मेरी ओ ! गौरैया तू |
फुदकती थी मटकती थी बिटिया मेरी तू |
मौन है आँगन मेरा.....आज उदास क्यूँ |
मचलती नहीं लिपटती नहीं ललिया क्यूँ ||

आज माहोल में समाई इतनी दहशत है क्यूँ |
राक्षसी आहट है संस्कारों में या दरिंदा कोई |
मैं बेचारा ! इतना लाचार सा हो रहा हूँ क्यूँ |
मैं संस्कृति हूँ ! भारत की छवि बलत्कृत ज्यूँ ||

------------------अलका गुप्ता --------------------

ले लो बाबू ले लो ! तुम देश का झंडा एक !
मिल जाए साथ में रोटी के भाजी भी एक !
ये नन्हीं सी मेरी आश भरी मुस्कान देखो !
भूखे पेट की जुगाड़ में झंडे की शान देखो !

-------------अलका गुप्ता -------------------