सोमवार, 28 जनवरी 2013

कुछ भाव बचपन के लिए 
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मैं राही.....एक बचपन का |
निश्चिन्त मासूम सा बच्चा हूँ |
मम्मा पापा ने दुलराया भी|
प्यार से खूब सहलाया भी||

आज मैं नारज कुछ हूँ |
जिद में मचला बहुत हूँ |
तंग करने का इरादा है |
यहाँ एकांत में आया हूँ ||

ढूंढेगे जब परेशान होकर |
होगी माँगपूरी कुर्बान होकर
मैं क्यूँ करूँ चिंता बच्चा हूँ !
करूँ क्या मन का सच्चा हूँ !!

-------अलका गुप्ता --------
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मैं बचपन ! अनजान निश्चिन्त राह का पथिक एक |
मैं ढलता ! हसरतों की सीढियाँ चढ़ता हर पल अनेक |
रूठता मचलता झिझकता हंसता चहकता अबोध सा |
जैसे मिटटी हो कुम्हार की निराकार गीला लौंदा एक ||

-------------------अलका गुप्ता----------------------------

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