शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

---------------पत्ती ------------
वृक्ष की शान पे हमेशा मुस्कराई पत्ती |
द्रवित हुई विछड़ कर वृक्ष से गिरी पती |

हवा ने भी खूब इधर-उधर नचाई पत्ती |
हाल पर अपने विचलित छटपटाई पत्ती |

तभी वृक्ष ने वहीँ से आस जगाई उसकी |
थी अभी तक मेरा जीवन आधार तू पत्ती !

व्यर्थ न जीवन अब भी, तू क्यूँ उदास पत्ती |
अब भी करेगी इस सृष्टि का तू उद्धार पत्ती |

निराशा मे रोना मत कर आशा संचार पत्ती|
हर प्राणी के जीवन का...है तू आधार पत्ती |

सजाना सँवारना या खाद बन मिटटी बनना|
उद्देश्य हो फिर से इस सृष्टि का उद्धार करना |

मुस्कराई ..समझ गई यह जीवन -सार पत्ती |
करेगी अर्पण ये जीवन सृष्टि कल्याण हेतु पत्ती ||

------------------अलका गुप्ता ---------------------

बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

alkabharti1962@yahoo.com
गरीबी में छिपा है तमाम ये हुनर हमारा|
मेरे आविष्कार की जननी है आवश्यकता ||

रोकर दौलत के लिए समय यूँ ही खोते नहीं |
भरोषा मेहनत का हम जाया करते नहीं ||

अपनी मेहनत के बल पे दुनिया सजा दी |
ना मिला फिर भी दो रोटी के सिवा कुछ भी ||

हौसले बुलंद हों तो मुश्किल कुछ भी नहीं |
नीला आकाश तो अपना है पूरी धरती नहीं ||

हाँ हम खुश हैं सडकों पर यूँ ही जीकर |
पन्नी और टाट की झुग्गियों में रहकर ||

तुम जैसी हमें दौलत की मारामारी नहीं |
हम खुश हैं यूँ ही हमें इतनी मुश्किल नहीं ||

---------------अलका गुप्ता ------------------
हौसलों की उड़ान थी...मासूम सी कल्पनाओं में । 
कत्ल हो गए अरमान हिंसक इन वियावानों में । 
हँसती रहीं खुदगर्ज ऐय्याशियां स्याह नकाबों में । 
दुनिया वीभत्स इतनी हरगिज न थी उस सोच में। 

----------------अलका गुप्ता --------------------alkabharti1962@yahoo.com
मशगूल न हो जाइए !
देखिए इधर भी ....
आह !! हैं हम बदनसीब सी ।
तड़फ इक बेचैन सी ।
सिसकी दर्दनाक भी ।
किसी इन्सान या बेजुवान की ।
फर्क कुछ नही!!
बस !!! चाहिए ध्यान ।
आपका .............।
इक निगाह तो उठा !
हाथ उठें ना बेशक ....
बस एक हांक तो लगा !!
दौड़ कर आएगा ...........
कोई जरुर .........
कि अभी इंसानियत ,
पूरी मरी भी नहीं !!
पूरी मरी भी नहीं !!
----अलका गुप्ता ---
उस क्षण मन था मेरा परेशान अजब हैरान |
विकट निराशा पनप रही थी मन था वीरान |
ढूंढ रहा था कोना एक कहीं एकांत सूनसान |
लगने लगा वह साहिल अपना नदी वेग ऊफान |
खोया था मन सुलझाने में अंतर्मन के गुम्फन |

टूटी तंद्रा अठखेलियों से राज हंस के शब्द सुन|
पिघल गए अवसाद पर्वत मुग्ध विस्फारित नयन|
देख प्रकृति के प्रेम सिंचित विलक्षण अद्दभुत क्षन |
टूटने लगे अहं के मिथ्या.....ये कुंठित अवगुंठन |
राज हंस हों अभिमंत्रित मंत्र प्रकृति से मुग्ध मन ||


---------------------अलका गुप्ता ----------------------

सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

हमारी पृथ्वी


सभी ग्रहों में है सबसे न्यारी ! हमारी धरती |
पृथ्वी तो माँ है और हमारा घर भी है धरती ||

गोल-मटोल धरा ये भण्डार अति...बसुन्धरा |
दिखती अंतरीक्ष से सुन्दर नीली हरी धरती||

स्वार्थ में अंधे हो अति दोहन कर रहे मानव |
भूल गए पालती पालने में लाड़ से माँ धरती ||

काटते पेड़ों को देते जो हमें जीवन...प्राण वायु |
छाँटकर पहाड़ों को नदी की धार में बाँध धरती ||

भूल ना गर्व में चूर मानव भवन देख गगनचुम्बी !
भूकंप कभी ज्यालामुखी से फुफकार उठेगी धरती ||

सच में माता है ये 'हमारी' ....भाग्यविधाता धरती |
उजाड़ ना हरियाला आँचल माँ के बाद है माँ धरती ||


--------------------अलका गुप्ता ----------------------

अलका भारती: मन के कुछ आक्रोशित भाव ..........

अलका भारती: मन के कुछ आक्रोशित भाव ..........: मन के कुछ आक्रोशित भाव .......... हौसले अरमान सभी होंगे पूरे एक दिन इक आस थी | समेट लुंगी बाहों में खुशियाँ सारी यही इक आस थी || तोड़ क...