बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

alkabharti1962@yahoo.com
गरीबी में छिपा है तमाम ये हुनर हमारा|
मेरे आविष्कार की जननी है आवश्यकता ||

रोकर दौलत के लिए समय यूँ ही खोते नहीं |
भरोषा मेहनत का हम जाया करते नहीं ||

अपनी मेहनत के बल पे दुनिया सजा दी |
ना मिला फिर भी दो रोटी के सिवा कुछ भी ||

हौसले बुलंद हों तो मुश्किल कुछ भी नहीं |
नीला आकाश तो अपना है पूरी धरती नहीं ||

हाँ हम खुश हैं सडकों पर यूँ ही जीकर |
पन्नी और टाट की झुग्गियों में रहकर ||

तुम जैसी हमें दौलत की मारामारी नहीं |
हम खुश हैं यूँ ही हमें इतनी मुश्किल नहीं ||

---------------अलका गुप्ता ------------------

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 23/02/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  2. दर्द भरी रचना इस समाज में आपके इस दर्द का कोई इलाज नहीं अलका जी

    मेरी नई रचना

    खुशबू

    प्रेमविरह

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  3. बेहतरीन .......
    आप भी पधारो स्वागत है ...
    pankajkrsah.blogspot.com

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