--गीतिका --मैं --
क्यूँ जिल्लत में ..जी रही हूँ मैं |
घूँट ..अपमान के.. पी रही हूँ मैं ||
ऐसी ..भी क्या ..लाचारी ..है |
पाषाण शिला सी ..जी रही हूँ मैं ||
मन में ..व्याकुल ..तूफ़ान ..उठे हैं |
क्यूँ ..व्यर्थ ही उन्हें ..दबा रही हूँ मैं ||
शक्ति रूपा ...नारी हूँ ...
क्यूँ ..लाचार दिख रही हूँ मैं ||
संचरण हूँ.. मैं ..नव जीवन का
क्यूँ ..आवरण में ..ढक रही हूँ मैं ||
माँ हूँ ..मैं पालती ..संस्कृति को
फिर भी ..तौहीन ..सह रही हूँ मैं ||
बंधी हूँ ..बन्धनों में ..स्वयं ..
क्यूँ ..व्यर्थ ..छटपटा रहीं हूँ मैं ||
समर्पिता हूँ मैं ..संस्कारों में ..भी |
कलंकित ..फिर क्यूँ ..हो रही हूँ मैं ||
मैं देवी ..अबला ..बिटिया घर की |
क्यूँ फिर ..बाजार में ..बिक रही हूँ मैं ||
मानव हूँ ..मैं भी.. मानवता में
क्यूँ बलि अंकुशों के चढ़ रही हूँ मैं ||
हर रिश्ता मैंने ही सजाया संवारा है |
गालियों में कुंठा की दागी जा रही हूँ मैं ||
----------------अलका गुप्ता-------------------
क्यूँ जिल्लत में ..जी रही हूँ मैं |
घूँट ..अपमान के.. पी रही हूँ मैं ||
ऐसी ..भी क्या ..लाचारी ..है |
पाषाण शिला सी ..जी रही हूँ मैं ||
मन में ..व्याकुल ..तूफ़ान ..उठे हैं |
क्यूँ ..व्यर्थ ही उन्हें ..दबा रही हूँ मैं ||
शक्ति रूपा ...नारी हूँ ...
क्यूँ ..लाचार दिख रही हूँ मैं ||
संचरण हूँ.. मैं ..नव जीवन का
क्यूँ ..आवरण में ..ढक रही हूँ मैं ||
माँ हूँ ..मैं पालती ..संस्कृति को
फिर भी ..तौहीन ..सह रही हूँ मैं ||
बंधी हूँ ..बन्धनों में ..स्वयं ..
क्यूँ ..व्यर्थ ..छटपटा रहीं हूँ मैं ||
समर्पिता हूँ मैं ..संस्कारों में ..भी |
कलंकित ..फिर क्यूँ ..हो रही हूँ मैं ||
मैं देवी ..अबला ..बिटिया घर की |
क्यूँ फिर ..बाजार में ..बिक रही हूँ मैं ||
मानव हूँ ..मैं भी.. मानवता में
क्यूँ बलि अंकुशों के चढ़ रही हूँ मैं ||
हर रिश्ता मैंने ही सजाया संवारा है |
गालियों में कुंठा की दागी जा रही हूँ मैं ||
----------------अलका गुप्ता-------------------
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