गुरुवार, 2 जनवरी 2014




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जीवन के दिन......... ऐसे बीतें........जैसे दिखें गुलाब |
नव वर्ष की हार्दिक शुभ-कामनाएँ रहें सदा आपके साथ ||
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आज मेरी एक बहुत ही पुरानी रचना आपके सम्मुख है ---

"उदास मैं !...उदास राहें चली "|
उजड़ी ..एक बगिया ..मिली |
मगर .....नहीं !
कली एक खिली मिली ...|
मुस्काती खिलखिलाती ...वह |
मैं ..उसके.. भाग्य से जली ||

पूँछा- ऐ अधखिली ..खिली कली !
दुःख ..क्या ..नहीं ....तुझे कोई ?
बोली वह - मुस्काती...इठलाती |
''मेरी बहना ....प्यारी -प्यारी !''
ढूंडती मैं ...दुखों में सुखों की लड़ी !
मारुति की ..मार से.... मैं झूमती !
छोडती न विश्व को ...|
शीत के आँसू जोडती ...|
ऋतुओं की हूँ ...अरविन्द मैं !
भौंरा है ..कितना ...मक्कार !
जानते यह ...सभी ...|
मगर ....नहीं..|
''मेरा तो...... जीवन सार वही !!"

अभी वह ...और कहती ...|
अभी वह ...और कहती ...|
मैं !...उसके भाग्य से जली |
तोड़ा ...झटके से ...!
अब ......... सूनी थी डाली !
मैं !...कुटिलता से हँसी !!

आया झोंका ...तेज वयार का |
टूटकर बिखर गई ....वह कली !
फिर से ...मैं !....हँस उठी |
तभी ...बिखरी पत्तियाँ चीख उठीं |
''देख ..!!!...क्या बिखरने से मेरे !
धरती ...!....नहीं सज उठी "|
मेरे लिए... फिर.... वही दास्तान |
"उदास मैं !....उदास राहें चलीं "||

---------------अलका गुप्ता----------------

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