मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

पुरुष ! आखिर तुम क्यों हो शर्मिंदा !
तुम तो एक नारी के बेटे हो |
या फिर हो तुम भी पिता बेटी के |
एक बहन के भाई भी तो हो तुम ही |
पति प्रेमी या बहुत कुछ तुम ही तो हो |
रिश्तों में हो आत्मीय बहुत सारे ...|
मेरे अपने .....मेरे लाडले सपने |
कदम बढालो ....साथ मेरे |
संस्कार ले लो बस साथ अपने |
सम्मान से भर लो आँख अपनी |
देवी नहीं ...केवल इंसान मानो |
इंसान मानो अपने जैसा ही |
सम्मान करो भावनाओं का भी |
उसे तन नहीं ...मन भी मानों |
जो इंसान नहीं होते हैं ....
चाहें वह मन का हो या तन का |
वह तो हर रिश्ते को छलते हैं |
घायल तो हर कोई होता है |
जो जुड़ा होता है एक नारी से
आखिर वह भी तो उसका ही ....
पिता भाई बेटा होता है |
बालात्कार पुरुष नहीं दरिन्दे हैवान करते है |
पुरुष तो हर नारी के ह्रदय में ही बसते हैं ||

-----------------अलका गुप्ता ----------------

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