हमारे ब्लॉग में जीवन और सामाजिक मुद्दों पर मेरे कुछ प्रेरक उदगार है मुझे पूरा विश्वास है कि वह आपको भी अपने अंदाज में अवश्य छू पाएंगे, क्योंकि यदि आप सहृदय हैं.तब वह आपकी भी अनुभूतियाँ अवश्य ही हैं.
मंगलवार, 23 सितंबर 2014
अलका भारती: छाँव
अलका भारती: छाँव: छाँव अपनी देकर जीवन आसमान कर लूँगा | लगाके हृदय से तुझे पूर्ण अरमान कर लूँगा | पुष्पांजलि भर ..वत्सल माधुर्य भाव तेरे .. पाकर बिटिया जीवन य...
वीरानियाँ
वीरानियाँ हर तरफ सिसकती रहीं |
दिल हाथ में थाम कर तड़फती रही |
संजोए हुए वो हर लम्हें यादों के ...
बिखरे हुए आशियाने से ढूंडती रही ||
दिल हाथ में थाम कर तड़फती रही |
संजोए हुए वो हर लम्हें यादों के ...
बिखरे हुए आशियाने से ढूंडती रही ||
---------------अलका गुप्ता--------------
Veeraaniyan har taraf sisakti rahin .
Dil haath men thaam kar tadafti rahin.
Sanjoe hue vo har lamjen yaadon ke ...
Bikhre hue aashiyaane se dhundati rahi .
Dil haath men thaam kar tadafti rahin.
Sanjoe hue vo har lamjen yaadon ke ...
Bikhre hue aashiyaane se dhundati rahi .
-----------------------Alka Gupta----------------------
मंगलवार, 2 सितंबर 2014
अलका भारती: --गीतिका --मैं --क्यूँ जिल्लत में ..जी रही हूँ मैं...
अलका भारती: --गीतिका --मैं --क्यूँ जिल्लत में ..जी रही हूँ मैं...: --गीतिका --मैं -- क्यूँ जिल्लत में ..जी रही हूँ मैं | घूँट ..अपमान के.. पी रही हूँ मैं || ऐसी ..भी क्या ..लाचारी ..है | पाषाण शिला सी ..जी ...
--गीतिका --मैं --
क्यूँ जिल्लत में ..जी रही हूँ मैं |
घूँट ..अपमान के.. पी रही हूँ मैं ||
ऐसी ..भी क्या ..लाचारी ..है |
पाषाण शिला सी ..जी रही हूँ मैं ||
मन में ..व्याकुल ..तूफ़ान ..उठे हैं |
क्यूँ ..व्यर्थ ही उन्हें ..दबा रही हूँ मैं ||
शक्ति रूपा ...नारी हूँ ...
क्यूँ ..लाचार दिख रही हूँ मैं ||
संचरण हूँ.. मैं ..नव जीवन का
क्यूँ ..आवरण में ..ढक रही हूँ मैं ||
माँ हूँ ..मैं पालती ..संस्कृति को
फिर भी ..तौहीन ..सह रही हूँ मैं ||
बंधी हूँ ..बन्धनों में ..स्वयं ..
क्यूँ ..व्यर्थ ..छटपटा रहीं हूँ मैं ||
समर्पिता हूँ मैं ..संस्कारों में ..भी |
कलंकित ..फिर क्यूँ ..हो रही हूँ मैं ||
मैं देवी ..अबला ..बिटिया घर की |
क्यूँ फिर ..बाजार में ..बिक रही हूँ मैं ||
मानव हूँ ..मैं भी.. मानवता में
क्यूँ बलि अंकुशों के चढ़ रही हूँ मैं ||
हर रिश्ता मैंने ही सजाया संवारा है |
गालियों में कुंठा की दागी जा रही हूँ मैं ||
----------------अलका गुप्ता-------------------
क्यूँ जिल्लत में ..जी रही हूँ मैं |
घूँट ..अपमान के.. पी रही हूँ मैं ||
ऐसी ..भी क्या ..लाचारी ..है |
पाषाण शिला सी ..जी रही हूँ मैं ||
मन में ..व्याकुल ..तूफ़ान ..उठे हैं |
क्यूँ ..व्यर्थ ही उन्हें ..दबा रही हूँ मैं ||
शक्ति रूपा ...नारी हूँ ...
क्यूँ ..लाचार दिख रही हूँ मैं ||
संचरण हूँ.. मैं ..नव जीवन का
क्यूँ ..आवरण में ..ढक रही हूँ मैं ||
माँ हूँ ..मैं पालती ..संस्कृति को
फिर भी ..तौहीन ..सह रही हूँ मैं ||
बंधी हूँ ..बन्धनों में ..स्वयं ..
क्यूँ ..व्यर्थ ..छटपटा रहीं हूँ मैं ||
समर्पिता हूँ मैं ..संस्कारों में ..भी |
कलंकित ..फिर क्यूँ ..हो रही हूँ मैं ||
मैं देवी ..अबला ..बिटिया घर की |
क्यूँ फिर ..बाजार में ..बिक रही हूँ मैं ||
मानव हूँ ..मैं भी.. मानवता में
क्यूँ बलि अंकुशों के चढ़ रही हूँ मैं ||
हर रिश्ता मैंने ही सजाया संवारा है |
गालियों में कुंठा की दागी जा रही हूँ मैं ||
----------------अलका गुप्ता-------------------
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