सोमवार, 24 दिसंबर 2012

मन के कुछ आक्रोशित भाव ..........


मन के कुछ आक्रोशित भाव ..........


हौसले अरमान सभी होंगे पूरे एक दिन इक आस थी |
समेट लुंगी बाहों में खुशियाँ सारी यही इक आस थी ||

तोड़ कर झिझोड़ दिया क्यूँ.......इतनी वहशत से |
देखे दुनियाँ तमाशबीन सी ना मन को ये आस थी ||

टूट गई हूँ ...विकल विवश सी मन में इतनी दहशत है |
शर्म करो उफ्फ !!! प्रश्नों से..जिनकी ना कोई आस थी ||

घूम रहे स्वच्छंद अपराधी देखो !!! भेड़िये की खाल में |
बन गई अपराधिनी...मैं ही कैसे..इसकी ना आस थी ||

मानवता से करूँ घृणा या देखूं हर मन को संशय भर |
रक्षक समझी थी ना विशवासघात की मन को आस  थी ||

मिलती नहीं सजा क्यूँ....समझ ना पाय 'अलका' यह |
इन घावों की सजा दे कोई...जिसकी दिल को आस  थी ||

---------------------अलका गुप्ता ---------------------------

माँ

सृष्टि का वरदान !प्रथम तू ही है....मेरी माँ !
इस सृष्टि से पहले,तुझे ही जाना है मेरी माँ !
प्रथम तेरे स्वार्थ की अंतिम चाह भी...मैं हूँ |
हर दर्द...हर आह के साथ याद आती है माँ !!

----------------अलका गुप्ता -----------------