मन के कुछ आक्रोशित भाव ..........
हौसले अरमान सभी होंगे पूरे एक दिन इक आस थी |
समेट लुंगी बाहों में खुशियाँ सारी यही इक आस थी ||
तोड़ कर झिझोड़ दिया क्यूँ.......इतनी वहशत से |
देखे दुनियाँ तमाशबीन सी ना मन को ये आस थी ||
टूट गई हूँ ...विकल विवश सी मन में इतनी दहशत है |
शर्म करो उफ्फ !!! प्रश्नों से..जिनकी ना कोई आस थी ||
घूम रहे स्वच्छंद अपराधी देखो !!! भेड़िये की खाल में |
बन गई अपराधिनी...मैं ही कैसे..इसकी ना आस थी ||
मानवता से करूँ घृणा या देखूं हर मन को संशय भर |
रक्षक समझी थी ना विशवासघात की मन को आस थी ||
मिलती नहीं सजा क्यूँ....समझ ना पाय 'अलका' यह |
इन घावों की सजा दे कोई...जिसकी दिल को आस थी ||
---------------------अलका गुप्ता ---------------------------
हौसले अरमान सभी होंगे पूरे एक दिन इक आस थी |
समेट लुंगी बाहों में खुशियाँ सारी यही इक आस थी ||
तोड़ कर झिझोड़ दिया क्यूँ.......इतनी वहशत से |
देखे दुनियाँ तमाशबीन सी ना मन को ये आस थी ||
टूट गई हूँ ...विकल विवश सी मन में इतनी दहशत है |
शर्म करो उफ्फ !!! प्रश्नों से..जिनकी ना कोई आस थी ||
घूम रहे स्वच्छंद अपराधी देखो !!! भेड़िये की खाल में |
बन गई अपराधिनी...मैं ही कैसे..इसकी ना आस थी ||
मानवता से करूँ घृणा या देखूं हर मन को संशय भर |
रक्षक समझी थी ना विशवासघात की मन को आस थी ||
मिलती नहीं सजा क्यूँ....समझ ना पाय 'अलका' यह |
इन घावों की सजा दे कोई...जिसकी दिल को आस थी ||
---------------------अलका गुप्ता ---------------------------
मुझे बहुत पसंद है ये ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंसादर
हार्दिक धन्यवाद .........
हटाएंघूम रहे स्वच्छंद अपराधी देखो !!! भेड़िये की खाल में |
जवाब देंहटाएंबन गई अपराधिनी...मैं ही कैसे..इसकी ना आस थी ||
....सार्थक प्रश्न उठाती बहुत मर्मस्पर्शी ग़ज़ल...
(अगर वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें तो कमेंट देने में सुविधा रहेगी)
हार्दिक धयवाद ..........ये वर्ड वेरिफिकेशन मुझे समझ में ही नहीं आ रहा है क्या है .......समझने की कोशिश कर रही हूँ
हटाएंवाह !सुंदर पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंमानवता से करूँ घृणा या देखूं हर मन को संशय भर |
रक्षक समझी थी ना विशवासघात की मन को आस थी ||
मिलती नहीं सजा क्यूँ....समझ ना पाय 'अलका' यह |
इन घावों की सजा दे कोई...जिसकी दिल को आस थी ||
(अगर वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें तो कमेंट देने में सुविधा रहेगी)
हार्दिक धन्यवाद
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