हमारे ब्लॉग में जीवन और सामाजिक मुद्दों पर मेरे कुछ प्रेरक उदगार है मुझे पूरा विश्वास है कि वह आपको भी अपने अंदाज में अवश्य छू पाएंगे, क्योंकि यदि आप सहृदय हैं.तब वह आपकी भी अनुभूतियाँ अवश्य ही हैं.
शनिवार, 23 अगस्त 2014
शुक्रवार, 18 जुलाई 2014
अलका भारती
अलका भारती--
वांचती सम्वेदनाएँ जो ...
बाँट देती सहेज कर वो ||
वांचती सम्वेदनाएँ जो ...
बाँट देती सहेज कर वो ||
काहे का भय है काले विषधर नाग से|
डर है दिल काले जिन कपड़े झाग से |
डसलें स्वार्थी जो ..वतन की आन को ..
दुष्कर्मों से खेलें ...निर्दोषों के भाग से ||
--------------अलका गुप्ता----------------
डर है दिल काले जिन कपड़े झाग से |
डसलें स्वार्थी जो ..वतन की आन को ..
दुष्कर्मों से खेलें ...निर्दोषों के भाग से ||
--------------अलका गुप्ता----------------
रविवार, 13 जुलाई 2014
नाजुक कली अभी खिली नहीं |
काँटों से बचके कभी चली नहीं |
भूखी है आरजू मासूम..राहों पर...
आहट..रोटी सी अभी मिली नहीं ||
------------- अलका गुप्ता----------------
काँटों से बचके कभी चली नहीं |
भूखी है आरजू मासूम..राहों पर...
आहट..रोटी सी अभी मिली नहीं ||
------------- अलका गुप्ता----------------
मैं देवी..कोई पत्थर की मूरत नहीं |
राहों में पड़े.. कंकड़ की सूरत नहीं |
हैं अरमान जिन्दा..अहसासों में मेरे ..
हक़ में दाबेदार... क्या औरत नहीं ||
-------------अलका गुप्ता----------------
Main devi.. kaoi patthar ki moorat nahin.
Rahon men pade..kankad ki soorat nahin .
Hain armaan jinda ...ahsaaon men mere...
haq men daavedaar ..kya aurat nahin .
--------------------Alka Gupta--------------------
राहों में पड़े.. कंकड़ की सूरत नहीं |
हैं अरमान जिन्दा..अहसासों में मेरे ..
हक़ में दाबेदार... क्या औरत नहीं ||
-------------अलका गुप्ता----------------
Main devi.. kaoi patthar ki moorat nahin.
Rahon men pade..kankad ki soorat nahin .
Hain armaan jinda ...ahsaaon men mere...
haq men daavedaar ..kya aurat nahin .
--------------------Alka Gupta--------------------
हमारी ख़ुशी का है आलम ये देखिए |
तिमंजली इस इमारत की शान देखिए |
सुकून का पल है ये कोई गर्दिश नहीं ...
रहने को ठिया है आज..न कम आंकिए ||
-----------------#अलका गुप्ता
-----------------
तिमंजली इस इमारत की शान देखिए |
सुकून का पल है ये कोई गर्दिश नहीं ...
रहने को ठिया है आज..न कम आंकिए ||
-----------------#अलका गुप्ता
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मंगलवार, 10 जून 2014
~~~~~तस्वीर ~~~~~
फाड़ कर यूँ तस्वीर हैरान हूँ |
हँसती रही यादें मैं वीरान हूँ |
तेरी बेवफ़ाइयों के सितम हैं ..
फिर भी क्यूँ ...मैं परेशान हूँ ||
----------अलका गुप्ता----------
Fad kar yun tasvir hairaan hun.
Hansti rahi yaaden main veeraan hun.
Teri bevafaaiyon ke sitam hain ...
Fir bhi kyun....main pareshaan hun .
--------------------Alka Gupta---------------
फाड़ कर यूँ तस्वीर हैरान हूँ |
हँसती रही यादें मैं वीरान हूँ |
तेरी बेवफ़ाइयों के सितम हैं ..
फिर भी क्यूँ ...मैं परेशान हूँ ||
----------अलका गुप्ता----------
Fad kar yun tasvir hairaan hun.
Hansti rahi yaaden main veeraan hun.
Teri bevafaaiyon ke sitam hain ...
Fir bhi kyun....main pareshaan hun .
--------------------Alka Gupta---------------
शनिवार, 3 मई 2014
अलका भारती: अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |...
अलका भारती: अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |...: अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |धूमिल से वो ... : हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं | धूमिल से वो अक्स आँखों में गुजरते...
अलका भारती: डरो बेशक ..मगर उसके सम्मान के हरण में ...करो ना ...
अलका भारती: डरो बेशक ..मगर उसके
सम्मान के हरण में ...
करो ना ...: डरो बेशक ..मगर उसके सम्मान के हरण में ... करो ना सम्मान बेशक .. एक इंसान तो समझो | वरना हर पल वह ... अपने होने से ... देती सबको ही......
सम्मान के हरण में ...
करो ना ...: डरो बेशक ..मगर उसके सम्मान के हरण में ... करो ना सम्मान बेशक .. एक इंसान तो समझो | वरना हर पल वह ... अपने होने से ... देती सबको ही......
बुधवार, 23 अप्रैल 2014
अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |धूमिल से वो ...
अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |धूमिल से वो ...: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं | धूमिल से वो अक्स आँखों में गुजरते हैं | हम तो पड़े हैं उन्हीं राहों में ठोकरों तले ... जिनसे आज भी मु...
अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |धूमिल से वो ...
अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |धूमिल से वो ...: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं | धूमिल से वो अक्स आँखों में गुजरते हैं | हम तो पड़े हैं उन्हीं राहों में ठोकरों तले ... जिनसे आज भी मु...
हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |
धूमिल से वो अक्स आँखों में गुजरते हैं |
हम तो पड़े हैं उन्हीं राहों में ठोकरों तले ...
जिनसे आज भी मुस्करा कर वो गुजरते हैं ||
-----------------अलका गुप्ता ------------------
Hansin vaadon ke kisse aaj bhi larjte hain .
Dhumil se vo aks aankhon se gujarte hain .
Ham to pade hain unhin raahon men thokron tale ...
Jinse aaj bhi muskra kar vo gujarte hain .
------------------------Alka Gupta--------------------------
धूमिल से वो अक्स आँखों में गुजरते हैं |
हम तो पड़े हैं उन्हीं राहों में ठोकरों तले ...
जिनसे आज भी मुस्करा कर वो गुजरते हैं ||
-----------------अलका गुप्ता ------------------
Hansin vaadon ke kisse aaj bhi larjte hain .
Dhumil se vo aks aankhon se gujarte hain .
Ham to pade hain unhin raahon men thokron tale ...
Jinse aaj bhi muskra kar vo gujarte hain .
------------------------Alka Gupta--------------------------
रविवार, 23 मार्च 2014
चले थे इसी जुस्तजू में |
कोई किनारा ना मिला ||
इस कदर भटके भंवर में |
कोई सहारा ना मिला ||
डूबती नैय्या सफर में |
कोई माँझी ना मिला ||
हवाओं की जुस्तजू में |
साधता मस्तूल ना मिला ||
तिश्नगी मिटती कहाँ ..
कफ़स -ए-रवायत में ||
मशरूफ हैं ..तड़पाने में |
जो अश्के लहू ना मिला ||
जिन्दा हैं वो उसी कारबार में |
कम कफ़न से दाम ना मिला ||
-----------अलका गुप्ता ----------
कोई किनारा ना मिला ||
इस कदर भटके भंवर में |
कोई सहारा ना मिला ||
डूबती नैय्या सफर में |
कोई माँझी ना मिला ||
हवाओं की जुस्तजू में |
साधता मस्तूल ना मिला ||
तिश्नगी मिटती कहाँ ..
कफ़स -ए-रवायत में ||
मशरूफ हैं ..तड़पाने में |
जो अश्के लहू ना मिला ||
जिन्दा हैं वो उसी कारबार में |
कम कफ़न से दाम ना मिला ||
-----------अलका गुप्ता ----------
सोमवार, 13 जनवरी 2014
चहकी न अब तक मधुशाला |
बहकी-बहकी चितवन बाला |
दहकी ना क्यूँ मन की ज्वाला |
भर दे तू साकी ! आज पियाला ||
जाम भी या क़दह भर जाएंगे |
डग-मग से कदम बहकाएंगे |
यहाँ - कभी - वहाँ गिर जाएँगे |
हालात वहके से नजर ना आएँगे ||
ये हाला है....कि इक ज्वाला है |
घर यूँ ही बेवजह जल जाएंगे |
होश गुम हो जाएँगे किसी के ....
जाम से जाम जब टकराएंगे ||
भरकर चषक...अरमान पी जाएंगे |
भूले रिश्ते...पान-पात्र से पी जाएंगे |
देखे हैं भूखे पेट या ये हैवान नशे में...
जद में घर जो श्मशान सा डराएंगे ||
ये चषक हैं मय के.....या चूषक |
मासूम रिश्ते-नातों के अवशोषक |
लुटती अस्मत उस मदहोशी के वश |
विस्मृती वश इंसान बने मात्र भक्षक ||
समझ ना पाऊं तेरा ये पीना और पिलाना |
अनियंत्रित भाषा वेश तेरा तू शराबी माना |
पेंदी बिन लोटे सा लुढका-लुढका घूम रहा |
इंसां रहे ना इंसां,तू पात्र हँसी का बेगाना ||
भूल जा गाना तू मधुशाला का बस |
सुनने में ही सुन्दर लगता है... बस |
ढलने में सबको ही... छलता है बस |
चषक पियाला पान-पात्र जाम क़दह..
जीवन से तू फेंक बाहर बहुत दूर बस ||
----------------अलका गुप्ता ----------------
बहकी-बहकी चितवन बाला |
दहकी ना क्यूँ मन की ज्वाला |
भर दे तू साकी ! आज पियाला ||
जाम भी या क़दह भर जाएंगे |
डग-मग से कदम बहकाएंगे |
यहाँ - कभी - वहाँ गिर जाएँगे |
हालात वहके से नजर ना आएँगे ||
ये हाला है....कि इक ज्वाला है |
घर यूँ ही बेवजह जल जाएंगे |
होश गुम हो जाएँगे किसी के ....
जाम से जाम जब टकराएंगे ||
भरकर चषक...अरमान पी जाएंगे |
भूले रिश्ते...पान-पात्र से पी जाएंगे |
देखे हैं भूखे पेट या ये हैवान नशे में...
जद में घर जो श्मशान सा डराएंगे ||
ये चषक हैं मय के.....या चूषक |
मासूम रिश्ते-नातों के अवशोषक |
लुटती अस्मत उस मदहोशी के वश |
विस्मृती वश इंसान बने मात्र भक्षक ||
समझ ना पाऊं तेरा ये पीना और पिलाना |
अनियंत्रित भाषा वेश तेरा तू शराबी माना |
पेंदी बिन लोटे सा लुढका-लुढका घूम रहा |
इंसां रहे ना इंसां,तू पात्र हँसी का बेगाना ||
भूल जा गाना तू मधुशाला का बस |
सुनने में ही सुन्दर लगता है... बस |
ढलने में सबको ही... छलता है बस |
चषक पियाला पान-पात्र जाम क़दह..
जीवन से तू फेंक बाहर बहुत दूर बस ||
----------------अलका गुप्ता ----------------
गुरुवार, 2 जनवरी 2014
===============================
जीवन के दिन......... ऐसे बीतें........जैसे दिखें गुलाब |
नव वर्ष की हार्दिक शुभ-कामनाएँ रहें सदा आपके साथ ||
===============================
आज मेरी एक बहुत ही पुरानी रचना आपके सम्मुख है ---
"उदास मैं !...उदास राहें चली "|
उजड़ी ..एक बगिया ..मिली |
मगर .....नहीं !
कली एक खिली मिली ...|
मुस्काती खिलखिलाती ...वह |
मैं ..उसके.. भाग्य से जली ||
पूँछा- ऐ अधखिली ..खिली कली !
दुःख ..क्या ..नहीं ....तुझे कोई ?
बोली वह - मुस्काती...इठलाती |
''मेरी बहना ....प्यारी -प्यारी !''
ढूंडती मैं ...दुखों में सुखों की लड़ी !
मारुति की ..मार से.... मैं झूमती !
छोडती न विश्व को ...|
शीत के आँसू जोडती ...|
ऋतुओं की हूँ ...अरविन्द मैं !
भौंरा है ..कितना ...मक्कार !
जानते यह ...सभी ...|
मगर ....नहीं..|
''मेरा तो...... जीवन सार वही !!"
अभी वह ...और कहती ...|
अभी वह ...और कहती ...|
मैं !...उसके भाग्य से जली |
तोड़ा ...झटके से ...!
अब ......... सूनी थी डाली !
मैं !...कुटिलता से हँसी !!
आया झोंका ...तेज वयार का |
टूटकर बिखर गई ....वह कली !
फिर से ...मैं !....हँस उठी |
तभी ...बिखरी पत्तियाँ चीख उठीं |
''देख ..!!!...क्या बिखरने से मेरे !
धरती ...!....नहीं सज उठी "|
मेरे लिए... फिर.... वही दास्तान |
"उदास मैं !....उदास राहें चलीं "||
---------------अलका गुप्ता----------------
जीवन के दिन......... ऐसे बीतें........जैसे दिखें गुलाब |
नव वर्ष की हार्दिक शुभ-कामनाएँ रहें सदा आपके साथ ||
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आज मेरी एक बहुत ही पुरानी रचना आपके सम्मुख है ---
"उदास मैं !...उदास राहें चली "|
उजड़ी ..एक बगिया ..मिली |
मगर .....नहीं !
कली एक खिली मिली ...|
मुस्काती खिलखिलाती ...वह |
मैं ..उसके.. भाग्य से जली ||
पूँछा- ऐ अधखिली ..खिली कली !
दुःख ..क्या ..नहीं ....तुझे कोई ?
बोली वह - मुस्काती...इठलाती |
''मेरी बहना ....प्यारी -प्यारी !''
ढूंडती मैं ...दुखों में सुखों की लड़ी !
मारुति की ..मार से.... मैं झूमती !
छोडती न विश्व को ...|
शीत के आँसू जोडती ...|
ऋतुओं की हूँ ...अरविन्द मैं !
भौंरा है ..कितना ...मक्कार !
जानते यह ...सभी ...|
मगर ....नहीं..|
''मेरा तो...... जीवन सार वही !!"
अभी वह ...और कहती ...|
अभी वह ...और कहती ...|
मैं !...उसके भाग्य से जली |
तोड़ा ...झटके से ...!
अब ......... सूनी थी डाली !
मैं !...कुटिलता से हँसी !!
आया झोंका ...तेज वयार का |
टूटकर बिखर गई ....वह कली !
फिर से ...मैं !....हँस उठी |
तभी ...बिखरी पत्तियाँ चीख उठीं |
''देख ..!!!...क्या बिखरने से मेरे !
धरती ...!....नहीं सज उठी "|
मेरे लिए... फिर.... वही दास्तान |
"उदास मैं !....उदास राहें चलीं "||
---------------अलका गुप्ता----------------
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