अलका भारती:
रात-दिन...मशक्कत से..जिया |अंधेरों से लड़ा गर्दिशो...: रात-दिन...मशक्कत से..जिया | अंधेरों से लड़ा गर्दिशों को पिया | हम रहें ..उजालों में ..गरीब था.. वह जला.. बन...बाती का दिया || ...
हमारे ब्लॉग में जीवन और सामाजिक मुद्दों पर मेरे कुछ प्रेरक उदगार है मुझे पूरा विश्वास है कि वह आपको भी अपने अंदाज में अवश्य छू पाएंगे, क्योंकि यदि आप सहृदय हैं.तब वह आपकी भी अनुभूतियाँ अवश्य ही हैं.
शुक्रवार, 12 दिसंबर 2014
शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2014
बुधवार, 22 अक्टूबर 2014
प्रेम ज्योति
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ..!!!
आशीष माँ शारदे संग कृपा लक्ष्मी-गणेश की भी पा जाएँ |
सद-बुद्धि शुभ-लाभ संग मानवता ये प्रकाशित कर पाएँ ||
ज्योति से ज्योति...मिलकर आओ प्रज्वलित कर जाएँ |
समिधा सी ..द्वंद सारे ..अंतर्मन के..बलिवेदी पर चढाएँ ||
समिधा सी ..द्वंद सारे ..अंतर्मन के..बलिवेदी पर चढाएँ ||
भूलकर वैमनष्य भाव सारे परस्पर प्रेम ज्योति जलाएँ |
बाँटकर सब ओर उजाला मोम से हम बेशक पिघल जाएँ ||
बाँटकर सब ओर उजाला मोम से हम बेशक पिघल जाएँ ||
अंधकार दूर धरा से ..अज्ञान ये सारा डटकर दूर भगाएँ |
आलोकित कर मानवता को नया सा इतिहास लिख जाएँ ||
----------------------अलका गुप्ता------------------------
आलोकित कर मानवता को नया सा इतिहास लिख जाएँ ||
----------------------अलका गुप्ता------------------------
मंगलवार, 23 सितंबर 2014
अलका भारती: छाँव
अलका भारती: छाँव: छाँव अपनी देकर जीवन आसमान कर लूँगा | लगाके हृदय से तुझे पूर्ण अरमान कर लूँगा | पुष्पांजलि भर ..वत्सल माधुर्य भाव तेरे .. पाकर बिटिया जीवन य...
वीरानियाँ
वीरानियाँ हर तरफ सिसकती रहीं |
दिल हाथ में थाम कर तड़फती रही |
संजोए हुए वो हर लम्हें यादों के ...
बिखरे हुए आशियाने से ढूंडती रही ||
दिल हाथ में थाम कर तड़फती रही |
संजोए हुए वो हर लम्हें यादों के ...
बिखरे हुए आशियाने से ढूंडती रही ||
---------------अलका गुप्ता--------------
Veeraaniyan har taraf sisakti rahin .
Dil haath men thaam kar tadafti rahin.
Sanjoe hue vo har lamjen yaadon ke ...
Bikhre hue aashiyaane se dhundati rahi .
Dil haath men thaam kar tadafti rahin.
Sanjoe hue vo har lamjen yaadon ke ...
Bikhre hue aashiyaane se dhundati rahi .
-----------------------Alka Gupta----------------------
मंगलवार, 2 सितंबर 2014
अलका भारती: --गीतिका --मैं --क्यूँ जिल्लत में ..जी रही हूँ मैं...
अलका भारती: --गीतिका --मैं --क्यूँ जिल्लत में ..जी रही हूँ मैं...: --गीतिका --मैं -- क्यूँ जिल्लत में ..जी रही हूँ मैं | घूँट ..अपमान के.. पी रही हूँ मैं || ऐसी ..भी क्या ..लाचारी ..है | पाषाण शिला सी ..जी ...
--गीतिका --मैं --
क्यूँ जिल्लत में ..जी रही हूँ मैं |
घूँट ..अपमान के.. पी रही हूँ मैं ||
ऐसी ..भी क्या ..लाचारी ..है |
पाषाण शिला सी ..जी रही हूँ मैं ||
मन में ..व्याकुल ..तूफ़ान ..उठे हैं |
क्यूँ ..व्यर्थ ही उन्हें ..दबा रही हूँ मैं ||
शक्ति रूपा ...नारी हूँ ...
क्यूँ ..लाचार दिख रही हूँ मैं ||
संचरण हूँ.. मैं ..नव जीवन का
क्यूँ ..आवरण में ..ढक रही हूँ मैं ||
माँ हूँ ..मैं पालती ..संस्कृति को
फिर भी ..तौहीन ..सह रही हूँ मैं ||
बंधी हूँ ..बन्धनों में ..स्वयं ..
क्यूँ ..व्यर्थ ..छटपटा रहीं हूँ मैं ||
समर्पिता हूँ मैं ..संस्कारों में ..भी |
कलंकित ..फिर क्यूँ ..हो रही हूँ मैं ||
मैं देवी ..अबला ..बिटिया घर की |
क्यूँ फिर ..बाजार में ..बिक रही हूँ मैं ||
मानव हूँ ..मैं भी.. मानवता में
क्यूँ बलि अंकुशों के चढ़ रही हूँ मैं ||
हर रिश्ता मैंने ही सजाया संवारा है |
गालियों में कुंठा की दागी जा रही हूँ मैं ||
----------------अलका गुप्ता-------------------
क्यूँ जिल्लत में ..जी रही हूँ मैं |
घूँट ..अपमान के.. पी रही हूँ मैं ||
ऐसी ..भी क्या ..लाचारी ..है |
पाषाण शिला सी ..जी रही हूँ मैं ||
मन में ..व्याकुल ..तूफ़ान ..उठे हैं |
क्यूँ ..व्यर्थ ही उन्हें ..दबा रही हूँ मैं ||
शक्ति रूपा ...नारी हूँ ...
क्यूँ ..लाचार दिख रही हूँ मैं ||
संचरण हूँ.. मैं ..नव जीवन का
क्यूँ ..आवरण में ..ढक रही हूँ मैं ||
माँ हूँ ..मैं पालती ..संस्कृति को
फिर भी ..तौहीन ..सह रही हूँ मैं ||
बंधी हूँ ..बन्धनों में ..स्वयं ..
क्यूँ ..व्यर्थ ..छटपटा रहीं हूँ मैं ||
समर्पिता हूँ मैं ..संस्कारों में ..भी |
कलंकित ..फिर क्यूँ ..हो रही हूँ मैं ||
मैं देवी ..अबला ..बिटिया घर की |
क्यूँ फिर ..बाजार में ..बिक रही हूँ मैं ||
मानव हूँ ..मैं भी.. मानवता में
क्यूँ बलि अंकुशों के चढ़ रही हूँ मैं ||
हर रिश्ता मैंने ही सजाया संवारा है |
गालियों में कुंठा की दागी जा रही हूँ मैं ||
----------------अलका गुप्ता-------------------
शनिवार, 23 अगस्त 2014
मैं मैं करता मैं मरा ,सब कुछ यहाँ समाय |
मैं मारा..मन को जरा , तुझ में गया विलाय ||(१)
मेरा मुझको चाहिए , हक़ में जितना आय |
कायर सा भी क्या जियूँ ,हक़ अपना मरवाय ||(2)
-------------------अलका गुप्ता-------------------
मैं मारा..मन को जरा , तुझ में गया विलाय ||(१)
मेरा मुझको चाहिए , हक़ में जितना आय |
कायर सा भी क्या जियूँ ,हक़ अपना मरवाय ||(2)
-------------------अलका गुप्ता-------------------
अलका भारती: कहा ..यूँ ..उस.. संगतराश से..मरमरी... उन पत्थरों न...
अलका भारती: कहा ..यूँ ..उस.. संगतराश से..मरमरी... उन पत्थरों न...: कहा ..यूँ .. उस.. संगतराश से.. मरमरी... उन पत्थरों ने|| चाहें ..कितनी ही... हथौड़ी ..या.. छेनी... तू चला || घाव जो.. रिसने लगें ... हर आह ! ...
अलका भारती: अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |...
अलका भारती: अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |...: अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |धूमिल से वो ... : हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं | धूमिल से वो अक्स आँखों में गुजरते...
शुक्रवार, 18 जुलाई 2014
अलका भारती
अलका भारती--
वांचती सम्वेदनाएँ जो ...
बाँट देती सहेज कर वो ||
वांचती सम्वेदनाएँ जो ...
बाँट देती सहेज कर वो ||
काहे का भय है काले विषधर नाग से|
डर है दिल काले जिन कपड़े झाग से |
डसलें स्वार्थी जो ..वतन की आन को ..
दुष्कर्मों से खेलें ...निर्दोषों के भाग से ||
--------------अलका गुप्ता----------------
डर है दिल काले जिन कपड़े झाग से |
डसलें स्वार्थी जो ..वतन की आन को ..
दुष्कर्मों से खेलें ...निर्दोषों के भाग से ||
--------------अलका गुप्ता----------------
रविवार, 13 जुलाई 2014
नाजुक कली अभी खिली नहीं |
काँटों से बचके कभी चली नहीं |
भूखी है आरजू मासूम..राहों पर...
आहट..रोटी सी अभी मिली नहीं ||
------------- अलका गुप्ता----------------
काँटों से बचके कभी चली नहीं |
भूखी है आरजू मासूम..राहों पर...
आहट..रोटी सी अभी मिली नहीं ||
------------- अलका गुप्ता----------------
मैं देवी..कोई पत्थर की मूरत नहीं |
राहों में पड़े.. कंकड़ की सूरत नहीं |
हैं अरमान जिन्दा..अहसासों में मेरे ..
हक़ में दाबेदार... क्या औरत नहीं ||
-------------अलका गुप्ता----------------
Main devi.. kaoi patthar ki moorat nahin.
Rahon men pade..kankad ki soorat nahin .
Hain armaan jinda ...ahsaaon men mere...
haq men daavedaar ..kya aurat nahin .
--------------------Alka Gupta--------------------
राहों में पड़े.. कंकड़ की सूरत नहीं |
हैं अरमान जिन्दा..अहसासों में मेरे ..
हक़ में दाबेदार... क्या औरत नहीं ||
-------------अलका गुप्ता----------------
Main devi.. kaoi patthar ki moorat nahin.
Rahon men pade..kankad ki soorat nahin .
Hain armaan jinda ...ahsaaon men mere...
haq men daavedaar ..kya aurat nahin .
--------------------Alka Gupta--------------------
हमारी ख़ुशी का है आलम ये देखिए |
तिमंजली इस इमारत की शान देखिए |
सुकून का पल है ये कोई गर्दिश नहीं ...
रहने को ठिया है आज..न कम आंकिए ||
-----------------#अलका गुप्ता
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तिमंजली इस इमारत की शान देखिए |
सुकून का पल है ये कोई गर्दिश नहीं ...
रहने को ठिया है आज..न कम आंकिए ||
-----------------#अलका गुप्ता
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