सोमवार, 17 अगस्त 2015

चंद हाईकू -



बढ़ा तू हाथ !
भूल सारे विषाद !
पीछे से हँसी ! 

नन्हीं सी ख़ुशी !
हँसेगा सारा जहाँ !
तेरे साथ ही ! 

जिन्दगी तेरी !
बिताना क्या गमों में !
ढूंढ ले खुशी ! 

कर श्रृंगार !
हृदय गुलाब से !
सहज कर ! 

नियामत है !
तोहफ़ा है जिन्दगी !
है बंदगी भी !

-------अलका गुप्ता -------

गुरुवार, 8 जनवरी 2015

~~~~अभिलाषा~~~~



~~~~अभिलाषा~~~~
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अंघकार विराट...जब.. छा जाए |
मानव हे ! मन जब..घबरा जाए ||
प्रज्वलित शिखा मेरी तुम कर देना |
जलजल तन ये चाहें पिघल जाए ||
अभिलाषा उर में ...बस इतनी ही ..
हर तन-मन प्रकाशित सा दमकाए ||
हो विलग मनहूस अँधेरे....भागें दूर ..
जीवन का हर क्षन रौशन हुलसाए ||
मैं शम्मा हूँ तन्हा ..ही जल जाऊँगी |
जीवन से जला हर तन्हाई जाऊँगी ||
---------------अलका गुप्ता----------------

सोमवार, 5 जनवरी 2015

परमात्मा

ईश ! वही परमपिता परमात्मा..एक है !
आत्मा प्रकृति ..रूप परिवर्तित अनेक है !
स्वामी एक वही सबका..अजर अमर वो..
घट-घट..व्यापी न्यायी उपकारी नेक है !!
----------------‪#‎अलका‬ गुप्ता----------------

बुधवार, 31 दिसंबर 2014

अलविदा ! .....2014........!!!
नव वर्ष की बहुत-बहुत हार्दिक शुभ-कामनाएँ !!!
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नव वर्ष है !
नव संचार सब !
नव गीत हों !
फिर प्रसार ...!
कृपा अपरम्पार ...!
दे ईश साथ ...!
हों दूर विघ्न !
खुलें उन्नति द्वार !
भरे उल्लास !
हर्षित होवें !
धन धन्य से पूर्ण !
ले सद्विचार !
---------‪#‎अलका‬ गुप्ता ----------

बुधवार, 17 दिसंबर 2014

अलका भारती: इंसानियत के कातिल

अलका भारती: इंसानियत के कातिल: घात ये इन्सानियत के कातिलों के | रिसते रहंगे घाव घातक घायलों के | दहलें दिल दहशते दारुण आघात से.. धर्म है पीना लहू लाल-लाल लालों ...

इंसानियत के कातिल




घात ये इन्सानियत के कातिलों के |
रिसते रहंगे घाव घातक घायलों के |
दहलें दिल दहशते दारुण आघात से..
धर्म है पीना लहू लाल-लाल लालों के ||

---------------अलका गुप्ता------------

शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2014

चित्र की प्रेरणा से उभरे ये भाव ---सादर आपके सम्मुख हैं साथियों !!!--  

फूट पड़ी वो.. ठूँठ शजर की.. डूब रही ...जो डाली है |
छटा मनोरम आँजती झूमें प्रकृति इशारे मतवाली है|
रूप अनुपम आँकता प्रतिबिम्ब सच्चिदानंद निरंतर...
अद्भुत आतुर जीजिविषा में..हो निमग्न हरियाली है ||
----------------------अलका‬ गुप्ता---------------------


बुधवार, 22 अक्तूबर 2014

प्रेम ज्योति

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ..!!!  

आशीष माँ शारदे संग कृपा लक्ष्मी-गणेश की भी पा जाएँ |
सद-बुद्धि शुभ-लाभ संग मानवता ये प्रकाशित कर पाएँ ||
ज्योति से ज्योति...मिलकर आओ प्रज्वलित कर जाएँ |
समिधा सी ..द्वंद सारे ..अंतर्मन के..बलिवेदी पर चढाएँ ||
भूलकर वैमनष्य भाव सारे परस्पर प्रेम ज्योति जलाएँ |
बाँटकर सब ओर उजाला मोम से हम बेशक पिघल जाएँ ||
अंधकार दूर धरा से ..अज्ञान ये सारा डटकर दूर भगाएँ |
आलोकित कर मानवता को नया सा इतिहास लिख जाएँ ||

----------------------अलका गुप्ता------------------------


मंगलवार, 23 सितंबर 2014

अलका भारती: छाँव

अलका भारती: छाँव: छाँव अपनी देकर जीवन आसमान कर लूँगा | लगाके हृदय से तुझे पूर्ण अरमान कर लूँगा | पुष्पांजलि भर ..वत्सल माधुर्य भाव तेरे .. पाकर बिटिया जीवन य...

छाँव

छाँव अपनी देकर जीवन आसमान कर लूँगा |
लगाके हृदय से तुझे पूर्ण अरमान कर लूँगा |
पुष्पांजलि भर ..वत्सल माधुर्य भाव तेरे ..
पाकर बिटिया जीवन ये अभिमान कर लूँगा ||
-------------------अलका गुप्ता---------------------


वीरानियाँ



वीरानियाँ हर तरफ सिसकती रहीं |
दिल हाथ में थाम कर तड़फती रही |
संजोए हुए वो हर लम्हें यादों के ...
बिखरे हुए आशियाने से ढूंडती रही ||
---------------अलका‬ गुप्ता--------------
Veeraaniyan har taraf sisakti rahin .
Dil haath men thaam kar tadafti rahin.
Sanjoe hue vo har lamjen yaadon ke ...
Bikhre hue aashiyaane se dhundati rahi .
-----------------------Alka Gupta----------------------

मंगलवार, 2 सितंबर 2014

अलका भारती: --गीतिका --मैं --क्यूँ जिल्लत में ..जी रही हूँ मैं...

अलका भारती: --गीतिका --मैं --क्यूँ जिल्लत में ..जी रही हूँ मैं...: --गीतिका --मैं -- क्यूँ जिल्लत में ..जी रही हूँ मैं | घूँट ..अपमान के.. पी रही हूँ मैं || ऐसी ..भी क्या ..लाचारी ..है | पाषाण शिला सी ..जी ...
--गीतिका --मैं --

क्यूँ जिल्लत में ..जी रही हूँ मैं |
घूँट ..अपमान के.. पी रही हूँ मैं ||

ऐसी ..भी क्या ..लाचारी ..है |
पाषाण शिला सी ..जी रही हूँ मैं ||

मन में ..व्याकुल ..तूफ़ान ..उठे हैं |
क्यूँ ..व्यर्थ ही उन्हें ..दबा रही हूँ मैं ||

शक्ति रूपा ...नारी हूँ ...
क्यूँ ..लाचार दिख रही हूँ मैं ||

संचरण हूँ.. मैं ..नव जीवन का
क्यूँ ..आवरण में ..ढक रही हूँ मैं ||

माँ हूँ ..मैं पालती ..संस्कृति को
फिर भी ..तौहीन ..सह रही हूँ मैं ||

बंधी हूँ ..बन्धनों में ..स्वयं ..
क्यूँ ..व्यर्थ ..छटपटा रहीं हूँ मैं ||

समर्पिता हूँ मैं ..संस्कारों में ..भी |
कलंकित ..फिर क्यूँ ..हो रही हूँ मैं ||

मैं देवी ..अबला ..बिटिया घर की |
क्यूँ फिर ..बाजार में ..बिक रही हूँ मैं ||

मानव हूँ ..मैं भी.. मानवता में
क्यूँ बलि अंकुशों के चढ़ रही हूँ मैं ||

हर रिश्ता मैंने ही सजाया संवारा है |
गालियों में कुंठा की दागी जा रही हूँ मैं ||

----------------अलका गुप्ता-------------------


--मुक्तक --

 भौंरा /मधुकर 

डोलता मधुकर..कली-कली |
चूमता भौंरा मदिर-मधु डली |
गुन-गुन गीत गुन्जारता मधुर ...
सार्थक प्रान मकरंद अलि कली ||

-------------अलका  गुप्ता---------------

शनिवार, 23 अगस्त 2014

मैं मैं करता मैं मरा ,सब कुछ यहाँ समाय |
मैं मारा..मन को जरा , तुझ में गया विलाय ||(१)

मेरा मुझको चाहिए , हक़ में जितना आय |
कायर सा भी क्या जियूँ ,हक़ अपना मरवाय ||(2)

-------------------अलका गुप्ता-------------------

अलका भारती: कहा ..यूँ ..उस.. संगतराश से..मरमरी... उन पत्थरों न...

अलका भारती: कहा ..यूँ ..उस.. संगतराश से..मरमरी... उन पत्थरों न...: कहा ..यूँ .. उस.. संगतराश से.. मरमरी... उन पत्थरों ने|| चाहें ..कितनी ही... हथौड़ी ..या.. छेनी... तू चला || घाव जो.. रिसने लगें ... हर आह ! ...

अलका भारती: अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |...

अलका भारती: अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |...: अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |धूमिल से वो ... : हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं | धूमिल से वो अक्स आँखों में गुजरते...