ले चल नैय्या.. माँझी रे !
उस क्षितिज के पास |
अरुणिम आतुर मिलन को..
धरती ..ये आकाश ||
साँझ की बेला है ..
सूरज आज अकेला है |
लहरों का मंथर मिलन..
ये प्रतिबिम्ब अलबेला है ||
ले चल नैय्या ..माँझी रे !
उस क्षितिज के पास |
ओट अवगुंठन नयन निहारें..
मिलन को आतुर आस ||
निशा विकल बाँहें प्रसार ..
श्यामल आंचल चन्द्रतारक डाल |
आतुर आलिंगन को प्रगाढ़ ..
झाँपती सी ब्रहम्हांड झुका भाल ||
झिलमिल उर्मि दर्पण में ..
झाँकती ये मुस्कान ..
विमुग्ध भाव-भीनी सी यौवन लाज
रास रचाएँगे ज्यों ..
मिलन प्रिय !..मधु से आज ||
ले चल नैय्या.. माँझी रे !
उस क्षितिज के पास ||
__________अलका गुप्ता 'भारती'__