कहाँ है सोन चिरैया मेरी ओ ! गौरैया तू |
फुदकती थी मटकती थी बिटिया मेरी तू |
मौन है आँगन मेरा.....आज उदास क्यूँ |
मचलती नहीं लिपटती नहीं ललिया क्यूँ ||
आज माहोल में समाई इतनी दहशत है क्यूँ |
राक्षसी आहट है संस्कारों में या दरिंदा कोई |
मैं बेचारा ! इतना लाचार सा हो रहा हूँ क्यूँ |
मैं संस्कृति हूँ ! भारत की छवि बलत्कृत ज्यूँ ||
------------------अलका गुप्ता --------------------
हमारे ब्लॉग में जीवन और सामाजिक मुद्दों पर मेरे कुछ प्रेरक उदगार है मुझे पूरा विश्वास है कि वह आपको भी अपने अंदाज में अवश्य छू पाएंगे, क्योंकि यदि आप सहृदय हैं.तब वह आपकी भी अनुभूतियाँ अवश्य ही हैं.
शनिवार, 29 दिसंबर 2012
(१) हौसलों की उड़ान
झुर्रियाँ जब मुस्काने लगें |
दीवानों की तरह |
दीवानों की तरह |
साथ तुम देना ...दिल
परवानों की तरह ||
परवानों की तरह ||
वक्त जब यादों में ....
इतिहास के ढलने लगे |
इतिहास के ढलने लगे |
अरमान तुम मन को
समझा लेना संभल कर ||
समझा लेना संभल कर ||
तारे जमीं पर ....
रूठने लगें जब |
रूठने लगें जब |
हौंसलों उड़ान तुम ....
भर देना आसमानों में ||
समेटने लगे मौत भी जब
आगोश में ...."अलका" |
आगोश में ...."अलका" |
गीत जिन्दगी के .....
गुनगुना लेना तुम हँसकर ||
(२) शब्द
शब्द अनायास ही दौड़ने लगे ।
क्यूँ कभी मन को कचोटने लगे ।
बांध ह्रदय का उमड़ने लगा |
घटा अचानक बरसने लगी ।
तीर से शब्द कभी चुभने लगे ।
घाव गंभीर करने लगे ....।
तीर से शब्द कभी चुभने लगे ।
घाव गंभीर करने लगे ....।
व्यथा बन नदी सी बहने लगे
अधीर हो सागर में ज्वार से...
मन को उफनाने लगे.....।
अधीर हो सागर में ज्वार से...
मन को उफनाने लगे.....।
क्या करिश्मा शब्द का जो...
शांत मन ..कभी स्थिर सा ।
कभी हंसाने गुदगुदाने लगे ।
शांत मन ..कभी स्थिर सा ।
कभी हंसाने गुदगुदाने लगे ।
जब भरे जोश में ....तो....
देश हित.... में योद्धा .....
जान अपनी ....लुटाने लगे ।
देश हित.... में योद्धा .....
जान अपनी ....लुटाने लगे ।
मंगलवार, 25 दिसंबर 2012
सोमवार, 24 दिसंबर 2012
मन के कुछ आक्रोशित भाव ..........
मन के कुछ आक्रोशित भाव ..........
हौसले अरमान सभी होंगे पूरे एक दिन इक आस थी |
समेट लुंगी बाहों में खुशियाँ सारी यही इक आस थी ||
तोड़ कर झिझोड़ दिया क्यूँ.......इतनी वहशत से |
देखे दुनियाँ तमाशबीन सी ना मन को ये आस थी ||
टूट गई हूँ ...विकल विवश सी मन में इतनी दहशत है |
शर्म करो उफ्फ !!! प्रश्नों से..जिनकी ना कोई आस थी ||
घूम रहे स्वच्छंद अपराधी देखो !!! भेड़िये की खाल में |
बन गई अपराधिनी...मैं ही कैसे..इसकी ना आस थी ||
मानवता से करूँ घृणा या देखूं हर मन को संशय भर |
रक्षक समझी थी ना विशवासघात की मन को आस थी ||
मिलती नहीं सजा क्यूँ....समझ ना पाय 'अलका' यह |
इन घावों की सजा दे कोई...जिसकी दिल को आस थी ||
---------------------अलका गुप्ता ---------------------------
हौसले अरमान सभी होंगे पूरे एक दिन इक आस थी |
समेट लुंगी बाहों में खुशियाँ सारी यही इक आस थी ||
तोड़ कर झिझोड़ दिया क्यूँ.......इतनी वहशत से |
देखे दुनियाँ तमाशबीन सी ना मन को ये आस थी ||
टूट गई हूँ ...विकल विवश सी मन में इतनी दहशत है |
शर्म करो उफ्फ !!! प्रश्नों से..जिनकी ना कोई आस थी ||
घूम रहे स्वच्छंद अपराधी देखो !!! भेड़िये की खाल में |
बन गई अपराधिनी...मैं ही कैसे..इसकी ना आस थी ||
मानवता से करूँ घृणा या देखूं हर मन को संशय भर |
रक्षक समझी थी ना विशवासघात की मन को आस थी ||
मिलती नहीं सजा क्यूँ....समझ ना पाय 'अलका' यह |
इन घावों की सजा दे कोई...जिसकी दिल को आस थी ||
---------------------अलका गुप्ता ---------------------------
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