बुधवार, 23 अप्रैल 2014

अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |धूमिल से वो ...

अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |धूमिल से वो ...: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं | धूमिल से वो अक्स आँखों में गुजरते हैं | हम तो पड़े हैं उन्हीं राहों में ठोकरों तले ... जिनसे आज भी मु...

अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |धूमिल से वो ...

अलका भारती: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |धूमिल से वो ...: हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं | धूमिल से वो अक्स आँखों में गुजरते हैं | हम तो पड़े हैं उन्हीं राहों में ठोकरों तले ... जिनसे आज भी मु...
हसीं वादों के किस्से आज भी लरजते हैं |
धूमिल से वो अक्स आँखों में गुजरते हैं |
हम तो पड़े हैं उन्हीं राहों में ठोकरों तले ...
जिनसे आज भी मुस्करा कर वो गुजरते हैं ||

-----------------अलका गुप्ता ------------------

Hansin vaadon ke kisse aaj bhi larjte hain .
Dhumil se vo aks aankhon se gujarte hain .
Ham to pade hain unhin raahon men thokron tale ... 
Jinse aaj bhi muskra kar vo gujarte hain .

------------------------Alka Gupta--------------------------

रविवार, 23 मार्च 2014

चले थे इसी जुस्तजू में |
कोई किनारा ना मिला ||

इस कदर भटके भंवर में |
कोई सहारा ना मिला ||

डूबती नैय्या सफर में |
कोई माँझी ना मिला ||

हवाओं की जुस्तजू में |
साधता मस्तूल ना मिला ||

तिश्नगी मिटती कहाँ ..
कफ़स -ए-रवायत में ||

मशरूफ हैं ..तड़पाने में |
जो अश्के लहू ना मिला ||

जिन्दा हैं वो उसी कारबार में |
कम कफ़न से दाम ना मिला ||

-----------अलका गुप्ता ----------

सोमवार, 13 जनवरी 2014



चहकी न अब तक मधुशाला |
बहकी-बहकी चितवन बाला |
दहकी ना क्यूँ मन की ज्वाला |
भर दे तू साकी ! आज पियाला ||

जाम भी या क़दह भर जाएंगे |
डग-मग से कदम बहकाएंगे |
यहाँ - कभी - वहाँ गिर जाएँगे |
हालात वहके से नजर ना आएँगे ||

ये हाला है....कि इक ज्वाला है |
घर यूँ ही बेवजह जल जाएंगे |
होश गुम हो जाएँगे किसी के ....
जाम से जाम जब टकराएंगे ||

भरकर चषक...अरमान पी जाएंगे |
भूले रिश्ते...पान-पात्र से पी जाएंगे |
देखे हैं भूखे पेट या ये हैवान नशे में...
जद में घर जो श्मशान सा डराएंगे ||

ये चषक हैं मय के.....या चूषक |
मासूम रिश्ते-नातों के अवशोषक |
लुटती अस्मत उस मदहोशी के वश |
विस्मृती वश इंसान बने मात्र भक्षक ||

समझ ना पाऊं तेरा ये पीना और पिलाना |
अनियंत्रित भाषा वेश तेरा तू शराबी माना |
पेंदी बिन लोटे सा लुढका-लुढका घूम रहा |
इंसां रहे ना इंसां,तू पात्र हँसी का बेगाना ||

भूल जा गाना तू मधुशाला का बस |
सुनने में ही सुन्दर लगता है... बस |
ढलने में सबको ही... छलता है बस |
चषक पियाला पान-पात्र जाम क़दह..
जीवन से तू फेंक बाहर बहुत दूर बस ||

----------------अलका गुप्ता ----------------

गुरुवार, 2 जनवरी 2014




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जीवन के दिन......... ऐसे बीतें........जैसे दिखें गुलाब |
नव वर्ष की हार्दिक शुभ-कामनाएँ रहें सदा आपके साथ ||
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आज मेरी एक बहुत ही पुरानी रचना आपके सम्मुख है ---

"उदास मैं !...उदास राहें चली "|
उजड़ी ..एक बगिया ..मिली |
मगर .....नहीं !
कली एक खिली मिली ...|
मुस्काती खिलखिलाती ...वह |
मैं ..उसके.. भाग्य से जली ||

पूँछा- ऐ अधखिली ..खिली कली !
दुःख ..क्या ..नहीं ....तुझे कोई ?
बोली वह - मुस्काती...इठलाती |
''मेरी बहना ....प्यारी -प्यारी !''
ढूंडती मैं ...दुखों में सुखों की लड़ी !
मारुति की ..मार से.... मैं झूमती !
छोडती न विश्व को ...|
शीत के आँसू जोडती ...|
ऋतुओं की हूँ ...अरविन्द मैं !
भौंरा है ..कितना ...मक्कार !
जानते यह ...सभी ...|
मगर ....नहीं..|
''मेरा तो...... जीवन सार वही !!"

अभी वह ...और कहती ...|
अभी वह ...और कहती ...|
मैं !...उसके भाग्य से जली |
तोड़ा ...झटके से ...!
अब ......... सूनी थी डाली !
मैं !...कुटिलता से हँसी !!

आया झोंका ...तेज वयार का |
टूटकर बिखर गई ....वह कली !
फिर से ...मैं !....हँस उठी |
तभी ...बिखरी पत्तियाँ चीख उठीं |
''देख ..!!!...क्या बिखरने से मेरे !
धरती ...!....नहीं सज उठी "|
मेरे लिए... फिर.... वही दास्तान |
"उदास मैं !....उदास राहें चलीं "||

---------------अलका गुप्ता----------------

नव वर्ष है

नव वर्ष है !
नव संचार सब !
नव गीत हों !

फिर प्रसार ...
कृपा अपरम्पार ...
ईश दे साथ ...

हों दूर विघ्न !
खुलें उन्नति द्वार !
भरे उल्लास !

हर्षित होवें !
धन धन्य से पूर्ण !
ले सद्विचार !

------------अलका गुप्ता ---------------

मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

तस्वीर कुछ कहती है ..........

खाने की है आरजू..आज भी ...पेट भर |
देख लेता हूँ दूर से ही खिलौने आँख भर |
बंदिशे मुफिलिसी की उठाने भी नहीं देतीं ...
बोझ किताबों और खिलौने का ..काँधे पर ||

--------------अलका गुप्ता ------------------

रविवार, 22 दिसंबर 2013

ये हमारा दिल है... कोई... खेल खिलौना नहीं |
चाहा..जब खेल लिया ...या कोई तवज्जो नहीं | 
हाड़ मांस का पुतला हूँ...दिल भी है.. धड़कता ..
इच्छाएं हैं उमंगें भी.. इतना भी..तू..जाने नहीं ||

------------------अलका गुप्ता ---------------------

अलका भारती

अलका भारतीhttps://plus.google.com/+AlkaGupta/posts
साँझ ..सपनों सी सजा गया कोई |
भीगे अहसासों में भिगा गया कोई |
बेगाने ...हुए जाते हैं अरमान क्यूँ ...
पैमाना मदहोश छलका गया कोई ||

-------------अलका गुप्ता--------------

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

डरो बेशक ..मगर उसके 
सम्मान के हरण में ...
करो ना सम्मान बेशक ..
एक इंसान तो समझो |

वरना हर पल वह ...
अपने होने से ...
देती सबको ही...
सुकून है |

व्यक्तित्व है वह भी...एक
जीवन में उसके भी...
होते हैंअरमान...अनेक |

माँ बेटी बहन पत्नी !
तमाम रिश्तों में ही वह ....
बता दो !...किस पल
साथ नहीं सबके ...
वह होती है |

रहस्यमयी वह हरगिज नहीं !
बस जिज्ञासाओं की...
नियत तेरी !...
हद से पार ...
झिंझोड़ने की होती है !

वरना वह तो ...
स्नेह प्यार दुलार ...
और त्याग की...
मूरत होती है |
पहले सबसे माँ सी ...
उसकी सूरत होती है ||

-------------अलका गुप्ता ---------------

............ताली .............

सन्मार्ग के हम ...पथिक हों |
प्रेम पथ का सदा विस्तार हो |
हों ..छल कपट से दूर सभी ..
कुंजी..सत्कर्म भी ..साथ हो ||

संस्कार का..न कभी ..भी ह्रास हो |
सम्मान में दूजे के भी ....मान हो |
भ्रष्ट ना कोई भी... यहाँ इंसान हो |
उत्कृष्ट चाभी ..सदा यही.. साथ हो ||

कदमों का ..बढ़ते हुए सब साथ हो |
निज स्वार्थ कर्म का ..परित्याग हो |
सत्कर्म और कर्तव्य में सौभाग्य हो |
मिलाएं हाथ इस ताली से विस्तार हो ||

-----------------अलका गुप्ता ---------------

दिए गए चित्र पर भाव-अभिव्यक्ति...आपके समक्ष मित्रों !!! 

इस करीने से ...सजा है क्या ..?
नाम तक मैं जानना चाहता नहीं !

भोग कहीं ...छप्पन तो नहीं !
मर रहा भूख से बेहाल कहीं !
ख्वाब भी ...हसीन है..जो ...
नसीब हुई रोटी भी सूखी कहीं !!

चढ़ रहे... मंदिरों में भोग हैं |
रुल रहे रस रसीले संजोग हैं |
ठाठ बाट में हैं देव पाषाण वहीँ ..
भूखा मरे कोई अजब संजोग हैं ||

चादरें चढती ..रहीं मजारों पर
इंसानियत के ..उन निशानों पर
मर गया कोई वहीँ ...नग्न ही ...
ठंडी सी ...पथरीली उन्हीं राहों पर ||

ख़्वाब भी देखा नहीं था भरी थाली का कभी |
रुखा -सूखा ही बहुत हुआ मिल जाए जो कभी |
यहीं कहीं फुटपाथ पे ...जिन्दगी यूँ ही कटती रही...
सोया भी सुकून से बेशक !तन पे कपड़ा न हो कभी ||

देखना क्या ..उस भरी थाली को ..
जों अपने नसीब में तो हरगिज नहीं !
इस करीने से... सजा है वह ..क्या ..?
नाम तक वह ..जानना चाहता नहीं !!


--------------------------अलका गुप्ता ----------------------------

रविवार, 1 दिसंबर 2013

जिन्दगी


-----जिन्दगी----

दर्दे सैलाब में डुबकियाँ लगाती रही जिन्दगी |

नश्तर कभी काँटे भी ...चुभाती रही जिन्दगी |
हँसती रही...जिन्दगी..उड़ा कर हँसी बेशर्म सी...
रौशनी सी दिखी...कभी जलाती रही जिन्दगी ||

-----------------अलका गुप्ता -------------------

मंगलवार, 15 अक्तूबर 2013



संकलित अनुभूतियों के ये जीवन धन|
भाव कोमल कभी कठोर से अद्भुत क्षन ||

हास विहास कभी दर्द गुंजित शब्द थे |
अवसाद पूर्ण कभी आस मिलन गूढ थे ||

हाथ-पांव थे मारते जीवन संघर्ष सब |
चिंतन मनन कभी अभिज्ञान शाकुंतलम ||

उतरता था प्रेमी...कभी विरही मन |
शब्द-शब्द छूते कभी निचोड़ते अंतर्मन ||

उड़ाने लगे उन्हें आज...आंदोलित कर |
समय के विचलित से ये झंझावाती पवन ||

उड़ चला मन विकल उन्हीं पन्नों के संग |
उभरने लगे अनुभूतियों के फिर वही क्षन ||

उकेरे थे शब्द जो अनुभूतियों के..डायरी संग |
हो रही हैं यादें बेचैन फिर वही लगने को अंग ||

उड़ चले पंछी से ..पन्नों में स्मृतियों के..वे छल|
गुम्फन सा उलझा मन..विश्मित उसी माया बल ||

---------------------अलका गुप्ता ------------------------

रविवार, 13 अक्तूबर 2013

जगत जननी माँ सर्वज्ञे जगदम्बे भवानी !
महामाये माँ हस्त शंख चक्र गदा धारनी !
हे पद्मासिने परब्रह्मस्वरूपणी देवी परमेशरी..
इष्टसिद्धि हेतु करो कृपा सर्वकार्य विधायिनी ||

------------------अलका गुप्ता -------------------
विजयदशमी की मित्रों !.. हार्दिक शुभकामनाएँ |
तजें बुराई सारी हम हों सर्वोत्तम !.. सब भावनाएँ ||

---------------------अलका गुप्ता ------------------------

बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

महाप्रयाण
अंतहीन प्रवास
अंतिम यात्रा ....१

भव-सागर
महा माया जंजाल
यात्रा कागार ....२

पुनर्जन्म है
नव यात्रा आगाज
मृत्यु विश्राम ....३

-----अलका गुप्ता -----

गुरुवार, 5 सितंबर 2013

बढ़ चले कदम यूँ ही वीरानों की तरफ |
खो रही थीं राहें अंधेरों में ....हर तरफ ||

डराते रहे साए से हादसों के फलसफे ...
बेबस सी खौफ में डूबी रही इक तडफ || 

बरगलाते हैं स्याह ये ...शैतानी आगाज़ |
मचाते रहे कत्ले आम बेरहम हर तरफ ||

बचा कर... इंसानियत को ...ऐ खुदा !
दिखा दे किरन..आस की.. हर तरफ ||

आवाद कर... 'अलका ' ... इक हौसला |
चेहरा.. अमन का ..मुस्करा दे हर तरफ ||

----------------अलका गुप्ता ----------------