हमारे ब्लॉग में जीवन और सामाजिक मुद्दों पर मेरे कुछ प्रेरक उदगार है मुझे पूरा विश्वास है कि वह आपको भी अपने अंदाज में अवश्य छू पाएंगे, क्योंकि यदि आप सहृदय हैं.तब वह आपकी भी अनुभूतियाँ अवश्य ही हैं.
मंगलवार, 31 दिसंबर 2013
गुरुवार, 19 दिसंबर 2013
डरो बेशक ..मगर उसके
सम्मान के हरण में ...
करो ना सम्मान बेशक ..
एक इंसान तो समझो |
वरना हर पल वह ...
अपने होने से ...
देती सबको ही...
सुकून है |
व्यक्तित्व है वह भी...एक
जीवन में उसके भी...
होते हैंअरमान...अनेक |
माँ बेटी बहन पत्नी !
तमाम रिश्तों में ही वह ....
बता दो !...किस पल
साथ नहीं सबके ...
वह होती है |
रहस्यमयी वह हरगिज नहीं !
बस जिज्ञासाओं की...
नियत तेरी !...
हद से पार ...
झिंझोड़ने की होती है !
वरना वह तो ...
स्नेह प्यार दुलार ...
और त्याग की...
मूरत होती है |
पहले सबसे माँ सी ...
उसकी सूरत होती है ||
-------------अलका गुप्ता ---------------
सम्मान के हरण में ...
करो ना सम्मान बेशक ..
एक इंसान तो समझो |
वरना हर पल वह ...
अपने होने से ...
देती सबको ही...
सुकून है |
व्यक्तित्व है वह भी...एक
जीवन में उसके भी...
होते हैंअरमान...अनेक |
माँ बेटी बहन पत्नी !
तमाम रिश्तों में ही वह ....
बता दो !...किस पल
साथ नहीं सबके ...
वह होती है |
रहस्यमयी वह हरगिज नहीं !
बस जिज्ञासाओं की...
नियत तेरी !...
हद से पार ...
झिंझोड़ने की होती है !
वरना वह तो ...
स्नेह प्यार दुलार ...
और त्याग की...
मूरत होती है |
पहले सबसे माँ सी ...
उसकी सूरत होती है ||
-------------अलका गुप्ता ---------------
............ताली .............
सन्मार्ग के हम ...पथिक हों |
प्रेम पथ का सदा विस्तार हो |
हों ..छल कपट से दूर सभी ..
कुंजी..सत्कर्म भी ..साथ हो ||
संस्कार का..न कभी ..भी ह्रास हो |
सम्मान में दूजे के भी ....मान हो |
भ्रष्ट ना कोई भी... यहाँ इंसान हो |
उत्कृष्ट चाभी ..सदा यही.. साथ हो ||
कदमों का ..बढ़ते हुए सब साथ हो |
निज स्वार्थ कर्म का ..परित्याग हो |
सत्कर्म और कर्तव्य में सौभाग्य हो |
मिलाएं हाथ इस ताली से विस्तार हो ||
-----------------अलका गुप्ता ---------------
सन्मार्ग के हम ...पथिक हों |
प्रेम पथ का सदा विस्तार हो |
हों ..छल कपट से दूर सभी ..
कुंजी..सत्कर्म भी ..साथ हो ||
संस्कार का..न कभी ..भी ह्रास हो |
सम्मान में दूजे के भी ....मान हो |
भ्रष्ट ना कोई भी... यहाँ इंसान हो |
उत्कृष्ट चाभी ..सदा यही.. साथ हो ||
कदमों का ..बढ़ते हुए सब साथ हो |
निज स्वार्थ कर्म का ..परित्याग हो |
सत्कर्म और कर्तव्य में सौभाग्य हो |
मिलाएं हाथ इस ताली से विस्तार हो ||
-----------------अलका गुप्ता ---------------
दिए गए चित्र पर भाव-अभिव्यक्ति...आपके समक्ष मित्रों !!!
इस करीने से ...सजा है क्या ..?
नाम तक मैं जानना चाहता नहीं !
भोग कहीं ...छप्पन तो नहीं !
मर रहा भूख से बेहाल कहीं !
ख्वाब भी ...हसीन है..जो ...
नसीब हुई रोटी भी सूखी कहीं !!
चढ़ रहे... मंदिरों में भोग हैं |
रुल रहे रस रसीले संजोग हैं |
ठाठ बाट में हैं देव पाषाण वहीँ ..
भूखा मरे कोई अजब संजोग हैं ||
चादरें चढती ..रहीं मजारों पर
इंसानियत के ..उन निशानों पर
मर गया कोई वहीँ ...नग्न ही ...
ठंडी सी ...पथरीली उन्हीं राहों पर ||
ख़्वाब भी देखा नहीं था भरी थाली का कभी |
रुखा -सूखा ही बहुत हुआ मिल जाए जो कभी |
यहीं कहीं फुटपाथ पे ...जिन्दगी यूँ ही कटती रही...
सोया भी सुकून से बेशक !तन पे कपड़ा न हो कभी ||
देखना क्या ..उस भरी थाली को ..
जों अपने नसीब में तो हरगिज नहीं !
इस करीने से... सजा है वह ..क्या ..?
नाम तक वह ..जानना चाहता नहीं !!
--------------------------अलका गुप्ता ----------------------------
इस करीने से ...सजा है क्या ..?
नाम तक मैं जानना चाहता नहीं !
भोग कहीं ...छप्पन तो नहीं !
मर रहा भूख से बेहाल कहीं !
ख्वाब भी ...हसीन है..जो ...
नसीब हुई रोटी भी सूखी कहीं !!
चढ़ रहे... मंदिरों में भोग हैं |
रुल रहे रस रसीले संजोग हैं |
ठाठ बाट में हैं देव पाषाण वहीँ ..
भूखा मरे कोई अजब संजोग हैं ||
चादरें चढती ..रहीं मजारों पर
इंसानियत के ..उन निशानों पर
मर गया कोई वहीँ ...नग्न ही ...
ठंडी सी ...पथरीली उन्हीं राहों पर ||
ख़्वाब भी देखा नहीं था भरी थाली का कभी |
रुखा -सूखा ही बहुत हुआ मिल जाए जो कभी |
यहीं कहीं फुटपाथ पे ...जिन्दगी यूँ ही कटती रही...
सोया भी सुकून से बेशक !तन पे कपड़ा न हो कभी ||
देखना क्या ..उस भरी थाली को ..
जों अपने नसीब में तो हरगिज नहीं !
इस करीने से... सजा है वह ..क्या ..?
नाम तक वह ..जानना चाहता नहीं !!
--------------------------अलका गुप्ता ----------------------------
रविवार, 1 दिसंबर 2013
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2013
संकलित अनुभूतियों के ये जीवन धन|
भाव कोमल कभी कठोर से अद्भुत क्षन ||
हास विहास कभी दर्द गुंजित शब्द थे |
अवसाद पूर्ण कभी आस मिलन गूढ थे ||
हाथ-पांव थे मारते जीवन संघर्ष सब |
चिंतन मनन कभी अभिज्ञान शाकुंतलम ||
उतरता था प्रेमी...कभी विरही मन |
शब्द-शब्द छूते कभी निचोड़ते अंतर्मन ||
उड़ाने लगे उन्हें आज...आंदोलित कर |
समय के विचलित से ये झंझावाती पवन ||
उड़ चला मन विकल उन्हीं पन्नों के संग |
उभरने लगे अनुभूतियों के फिर वही क्षन ||
उकेरे थे शब्द जो अनुभूतियों के..डायरी संग |
हो रही हैं यादें बेचैन फिर वही लगने को अंग ||
उड़ चले पंछी से ..पन्नों में स्मृतियों के..वे छल|
गुम्फन सा उलझा मन..विश्मित उसी माया बल ||
---------------------अलका गुप्ता ------------------------
भाव कोमल कभी कठोर से अद्भुत क्षन ||
हास विहास कभी दर्द गुंजित शब्द थे |
अवसाद पूर्ण कभी आस मिलन गूढ थे ||
हाथ-पांव थे मारते जीवन संघर्ष सब |
चिंतन मनन कभी अभिज्ञान शाकुंतलम ||
उतरता था प्रेमी...कभी विरही मन |
शब्द-शब्द छूते कभी निचोड़ते अंतर्मन ||
उड़ाने लगे उन्हें आज...आंदोलित कर |
समय के विचलित से ये झंझावाती पवन ||
उड़ चला मन विकल उन्हीं पन्नों के संग |
उभरने लगे अनुभूतियों के फिर वही क्षन ||
उकेरे थे शब्द जो अनुभूतियों के..डायरी संग |
हो रही हैं यादें बेचैन फिर वही लगने को अंग ||
उड़ चले पंछी से ..पन्नों में स्मृतियों के..वे छल|
गुम्फन सा उलझा मन..विश्मित उसी माया बल ||
---------------------अलका गुप्ता ------------------------
बुधवार, 2 अक्टूबर 2013
गुरुवार, 5 सितंबर 2013
बढ़ चले कदम यूँ ही वीरानों की तरफ |
खो रही थीं राहें अंधेरों में ....हर तरफ ||
डराते रहे साए से हादसों के फलसफे ...
बेबस सी खौफ में डूबी रही इक तडफ ||
बरगलाते हैं स्याह ये ...शैतानी आगाज़ |
मचाते रहे कत्ले आम बेरहम हर तरफ ||
बचा कर... इंसानियत को ...ऐ खुदा !
दिखा दे किरन..आस की.. हर तरफ ||
आवाद कर... 'अलका ' ... इक हौसला |
चेहरा.. अमन का ..मुस्करा दे हर तरफ ||
----------------अलका गुप्ता ----------------
खो रही थीं राहें अंधेरों में ....हर तरफ ||
डराते रहे साए से हादसों के फलसफे ...
बेबस सी खौफ में डूबी रही इक तडफ ||
बरगलाते हैं स्याह ये ...शैतानी आगाज़ |
मचाते रहे कत्ले आम बेरहम हर तरफ ||
बचा कर... इंसानियत को ...ऐ खुदा !
दिखा दे किरन..आस की.. हर तरफ ||
आवाद कर... 'अलका ' ... इक हौसला |
चेहरा.. अमन का ..मुस्करा दे हर तरफ ||
----------------अलका गुप्ता ----------------
शनिवार, 31 अगस्त 2013
हौसले रखना बुलंद !..जीना ना यूँ ही घिसट कर |
रोना ना मजबूरियां जीवन की विकलांग बन कर |
जीना... ये जिन्दगी.... ईश्वर की नेमत समझकर |
रोना क्या रोना जिन्दगी का लाचार मजलूम बनकर|
रखना सदा उड़ान ऊँची हौंसलों की...वितान बनकर |
जीवन तो वैसे सबका है तुम जीना मिसाल बनकर |
-------------------अलका गुप्ता ---------------------
-----------------समर्पिता -----------------
भ्रमित मन क्यूँ हो रहा व्यथित आज !
क्यूँ आकुल....तू आंचल रही सम्भाल !
नाम समर्पिता कर दे.. तू सार्थक आज !
यही प्रीत ... कली का.. नेत्र उन्मीलन है !
पगली !...यही समझ ले..... तू आज !
झूकी हैं पलकें...क्यूँ कपोल रक्त से लाल !
ढके जो .... यौवन के ...... अवगुंठन से !
त्याग उसे तू ! .... कर ले .... स्वीकार !
यही मधुप है ! .. यही उसका प्रणय -गान !
ओ प्रेयसी ! देकर उसको ..... जीवनदान !
चलो ! चलें...... उस क्षितिज ... के पास !
एकांत की .... मधुर वीणा .... ले साथ !
सुमधुर भाव के... झंकृत हो ... तार-तार !
झूम उठेंगे.. मधुर मिलन के .. सुर-ताल !
महक तभी .. उठेगा ..सारा .. यह संसार |
न ... थकित से .... विमुग्ध ..... भाव से !
एक हो जाएंगे .... ये ..... प्राण-प्राण !
चंदा ... तारे ... वन ... उपवन ... सब !
गाएंगे ... पुलकित हो ! ... मंगल -गान !!
------------------अलका गुप्ता ------------------
क्यूँ आकुल....तू आंचल रही सम्भाल !
नाम समर्पिता कर दे.. तू सार्थक आज !
यही प्रीत ... कली का.. नेत्र उन्मीलन है !
पगली !...यही समझ ले..... तू आज !
झूकी हैं पलकें...क्यूँ कपोल रक्त से लाल !
ढके जो .... यौवन के ...... अवगुंठन से !
त्याग उसे तू ! .... कर ले .... स्वीकार !
यही मधुप है ! .. यही उसका प्रणय -गान !
ओ प्रेयसी ! देकर उसको ..... जीवनदान !
चलो ! चलें...... उस क्षितिज ... के पास !
एकांत की .... मधुर वीणा .... ले साथ !
सुमधुर भाव के... झंकृत हो ... तार-तार !
झूम उठेंगे.. मधुर मिलन के .. सुर-ताल !
महक तभी .. उठेगा ..सारा .. यह संसार |
न ... थकित से .... विमुग्ध ..... भाव से !
एक हो जाएंगे .... ये ..... प्राण-प्राण !
चंदा ... तारे ... वन ... उपवन ... सब !
गाएंगे ... पुलकित हो ! ... मंगल -गान !!
------------------अलका गुप्ता ------------------
मंगलवार, 30 अप्रैल 2013
कवि-मन
कवि-मन सृजक मानवता का|
अनुपम इतिहास रचाता |
नित नूतन निर्मल गूढ़ उद्गार जगाता |
कर भावों का श्रृंगार....
शब्द से वधु कविता सजाता |
अनुपम सौन्दर्य युक्त...
जनक कल्पनाओं का |
कभी शब्दों का सौदागर
वह बन जाता |
रचता कामायनी कभी...
मधुशाला सी जाम छलकाता |
शब्द जाल में मीन सा...
भावुक ह्रदय फंसाता...वह तड़पाता |
अद्भुत कभी विहंगम...
विस्मृत मन्त्रमुग्ध दृश्य सजाता |
विद्रूप सा अक्सर दर्पण भी दिखाता |
शब्द-भावों की कर उठा पटक...
अद्भुत अनुपम खेल खिलाता |
कवि-मन की प्रसव-पीड़ा से
जन्मी रचना को ...
हर सुधी मन पुलकित हो
पलक-पांवडों में झुलाता |
शब्दों का खिलाड़ी वह...
हर भावों में ढल मन को नाचाता |
कवि-मन कोमल सहृदय चिंतन...
मनन गढ़न सुन्दर कृति सा |
कवि-मन की सलोनी रस मय कविता |
मौसम काल गीत सा हर पल गाता |
निःशेष शेष सी हर भाषा हर मन में वह रम जाता |
पुरुष ! आखिर तुम क्यों हो शर्मिंदा !
तुम तो एक नारी के बेटे हो |
या फिर हो तुम भी पिता बेटी के |
एक बहन के भाई भी तो हो तुम ही |
पति प्रेमी या बहुत कुछ तुम ही तो हो |
रिश्तों में हो आत्मीय बहुत सारे ...|
मेरे अपने .....मेरे लाडले सपने |
कदम बढालो ....साथ मेरे |
संस्कार ले लो बस साथ अपने |
सम्मान से भर लो आँख अपनी |
देवी नहीं ...केवल इंसान मानो |
इंसान मानो अपने जैसा ही |
सम्मान करो भावनाओं का भी |
उसे तन नहीं ...मन भी मानों |
जो इंसान नहीं होते हैं ....
चाहें वह मन का हो या तन का |
वह तो हर रिश्ते को छलते हैं |
घायल तो हर कोई होता है |
जो जुड़ा होता है एक नारी से
आखिर वह भी तो उसका ही ....
पिता भाई बेटा होता है |
बालात्कार पुरुष नहीं दरिन्दे हैवान करते है |
पुरुष तो हर नारी के ह्रदय में ही बसते हैं ||
-----------------अलका गुप्ता ----------------
तुम तो एक नारी के बेटे हो |
या फिर हो तुम भी पिता बेटी के |
एक बहन के भाई भी तो हो तुम ही |
पति प्रेमी या बहुत कुछ तुम ही तो हो |
रिश्तों में हो आत्मीय बहुत सारे ...|
मेरे अपने .....मेरे लाडले सपने |
कदम बढालो ....साथ मेरे |
संस्कार ले लो बस साथ अपने |
सम्मान से भर लो आँख अपनी |
देवी नहीं ...केवल इंसान मानो |
इंसान मानो अपने जैसा ही |
सम्मान करो भावनाओं का भी |
उसे तन नहीं ...मन भी मानों |
जो इंसान नहीं होते हैं ....
चाहें वह मन का हो या तन का |
वह तो हर रिश्ते को छलते हैं |
घायल तो हर कोई होता है |
जो जुड़ा होता है एक नारी से
आखिर वह भी तो उसका ही ....
पिता भाई बेटा होता है |
बालात्कार पुरुष नहीं दरिन्दे हैवान करते है |
पुरुष तो हर नारी के ह्रदय में ही बसते हैं ||
-----------------अलका गुप्ता ----------------
सोमवार, 18 मार्च 2013
मधुमासी इतिहास
![]() |
बींध रहा है ...मन आज |
नयन ही नयनों से
खेलन लगे हैं रास ||
घायल हुआ मन...अनंग
तीक्ष्ण वाणों से आज |
टूट गए बन्धन ...लाज
गुंफन के सब फांस ||
करने लगे..... झंकृत...
मधुर श्वासों को सुर ताल |
होने लगे मधुराग
गुंजित..... अनायास ||
करने लगे अठखेलियाँ-
यक्ष - यक्षिणी आज |
रचने लगे तप्त अधरों से -
गीत बुन्देली.....कुछ ख़ास ||
सिमटने लगे तम की चादर में
पर्व आलिंगनों के अपार |
विस्मृत तन-मन हुए... आत्मा -
-अविभूत अद्भुत हास विन्यास ||
सो गया फिर....वह कुशल गन्धर्व !
क्षन - उसी - वीणा के पास |
अमर हो गया वह...स्वर्णिम
भीगा -भीगा सा मधुमासी इतिहास ||
---------------अलका गुप्ता ---------------
शुक्रवार, 1 मार्च 2013
मधुमासी इतिहास
![]() |
कैप्शन जोड़ें |
बींध रहा है ...मन आज |
नयन ही नयनों से
खेलन लगे हैं रास ||
घायल हुआ मन...अनंग
तीक्ष्ण वाणों से आज |
टूट गए बन्धन ...लाज
गुंफन के सब फांस ||
करने लगे..... झंकृत...
मधुर श्वासों को सुर ताल |
होने लगे मधुराग
गुंजित..... अनायास ||
करने लगे अठखेलियाँ-
यक्ष - यक्षिणी आज |
रच लगे तप्त अधरों से -
गीत बुन्देली.....कुछ ख़ास ||
सिमटने लगे तम की चादर में
पर्व आलिंगनों के अपार |
विस्मृत तन-मन हुए... आत्मा -
-अविभूत अद्भुत हास विन्यास ||
सो गया फिर....वह कुशल गन्धर्व !
क्षन - उसी - वीणा के पास |
अमर हो गया वह...स्वर्णिम
भीगा -भीगा सा मधुमासी इतिहास ||
---------------अलका गुप्ता ---------------
रविवार, 24 फ़रवरी 2013
शनिवार, 23 फ़रवरी 2013
---------------पत्ती ------------
वृक्ष की शान पे हमेशा मुस्कराई पत्ती |
द्रवित हुई विछड़ कर वृक्ष से गिरी पती |
हवा ने भी खूब इधर-उधर नचाई पत्ती |
हाल पर अपने विचलित छटपटाई पत्ती |
तभी वृक्ष ने वहीँ से आस जगाई उसकी |
थी अभी तक मेरा जीवन आधार तू पत्ती !
व्यर्थ न जीवन अब भी, तू क्यूँ उदास पत्ती |
अब भी करेगी इस सृष्टि का तू उद्धार पत्ती |
निराशा मे रोना मत कर आशा संचार पत्ती|
हर प्राणी के जीवन का...है तू आधार पत्ती |
सजाना सँवारना या खाद बन मिटटी बनना|
उद्देश्य हो फिर से इस सृष्टि का उद्धार करना |
मुस्कराई ..समझ गई यह जीवन -सार पत्ती |
करेगी अर्पण ये जीवन सृष्टि कल्याण हेतु पत्ती ||
------------------अलका गुप्ता ---------------------
वृक्ष की शान पे हमेशा मुस्कराई पत्ती |
द्रवित हुई विछड़ कर वृक्ष से गिरी पती |
हवा ने भी खूब इधर-उधर नचाई पत्ती |
हाल पर अपने विचलित छटपटाई पत्ती |
तभी वृक्ष ने वहीँ से आस जगाई उसकी |
थी अभी तक मेरा जीवन आधार तू पत्ती !
व्यर्थ न जीवन अब भी, तू क्यूँ उदास पत्ती |
अब भी करेगी इस सृष्टि का तू उद्धार पत्ती |
निराशा मे रोना मत कर आशा संचार पत्ती|
हर प्राणी के जीवन का...है तू आधार पत्ती |
सजाना सँवारना या खाद बन मिटटी बनना|
उद्देश्य हो फिर से इस सृष्टि का उद्धार करना |
मुस्कराई ..समझ गई यह जीवन -सार पत्ती |
करेगी अर्पण ये जीवन सृष्टि कल्याण हेतु पत्ती ||
------------------अलका गुप्ता ---------------------
![]() |
बुधवार, 20 फ़रवरी 2013
alkabharti1962@yahoo.com
गरीबी में छिपा है तमाम ये हुनर हमारा|
मेरे आविष्कार की जननी है आवश्यकता ||
रोकर दौलत के लिए समय यूँ ही खोते नहीं |
भरोषा मेहनत का हम जाया करते नहीं ||
अपनी मेहनत के बल पे दुनिया सजा दी |
ना मिला फिर भी दो रोटी के सिवा कुछ भी ||
हौसले बुलंद हों तो मुश्किल कुछ भी नहीं |
नीला आकाश तो अपना है पूरी धरती नहीं ||
हाँ हम खुश हैं सडकों पर यूँ ही जीकर |
पन्नी और टाट की झुग्गियों में रहकर ||
तुम जैसी हमें दौलत की मारामारी नहीं |
हम खुश हैं यूँ ही हमें इतनी मुश्किल नहीं ||
---------------अलका गुप्ता ------------------
मेरे आविष्कार की जननी है आवश्यकता ||
रोकर दौलत के लिए समय यूँ ही खोते नहीं |
भरोषा मेहनत का हम जाया करते नहीं ||
अपनी मेहनत के बल पे दुनिया सजा दी |
ना मिला फिर भी दो रोटी के सिवा कुछ भी ||
हौसले बुलंद हों तो मुश्किल कुछ भी नहीं |
नीला आकाश तो अपना है पूरी धरती नहीं ||
हाँ हम खुश हैं सडकों पर यूँ ही जीकर |
पन्नी और टाट की झुग्गियों में रहकर ||
तुम जैसी हमें दौलत की मारामारी नहीं |
हम खुश हैं यूँ ही हमें इतनी मुश्किल नहीं ||
---------------अलका गुप्ता ------------------
हौसलों की उड़ान थी...मासूम सी कल्पनाओं में ।
कत्ल हो गए अरमान हिंसक इन वियावानों में ।
हँसती रहीं खुदगर्ज ऐय्याशियां स्याह नकाबों में ।
दुनिया वीभत्स इतनी हरगिज न थी उस सोच में।
----------------अलका गुप्ता --------------------alkabharti1962@yahoo.com
कत्ल हो गए अरमान हिंसक इन वियावानों में ।
हँसती रहीं खुदगर्ज ऐय्याशियां स्याह नकाबों में ।
दुनिया वीभत्स इतनी हरगिज न थी उस सोच में।
----------------अलका गुप्ता --------------------alkabharti1962@yahoo.com
मशगूल न हो जाइए !
देखिए इधर भी ....
आह !! हैं हम बदनसीब सी ।
तड़फ इक बेचैन सी ।
सिसकी दर्दनाक भी ।
किसी इन्सान या बेजुवान की ।
फर्क कुछ नही!!
बस !!! चाहिए ध्यान ।
आपका .............।
इक निगाह तो उठा !
हाथ उठें ना बेशक ....
बस एक हांक तो लगा !!
दौड़ कर आएगा ...........
कोई जरुर .........
कि अभी इंसानियत ,
पूरी मरी भी नहीं !!
पूरी मरी भी नहीं !!
----अलका गुप्ता ---
देखिए इधर भी ....
आह !! हैं हम बदनसीब सी ।
तड़फ इक बेचैन सी ।
सिसकी दर्दनाक भी ।
किसी इन्सान या बेजुवान की ।
फर्क कुछ नही!!

बस !!! चाहिए ध्यान ।
आपका .............।
इक निगाह तो उठा !
हाथ उठें ना बेशक ....
बस एक हांक तो लगा !!
दौड़ कर आएगा ...........
कोई जरुर .........
कि अभी इंसानियत ,
पूरी मरी भी नहीं !!
पूरी मरी भी नहीं !!
----अलका गुप्ता ---
उस क्षण मन था मेरा परेशान अजब हैरान |
विकट निराशा पनप रही थी मन था वीरान |
ढूंढ रहा था कोना एक कहीं एकांत सूनसान |
लगने लगा वह साहिल अपना नदी वेग ऊफान |
खोया था मन सुलझाने में अंतर्मन के गुम्फन |
टूटी तंद्रा अठखेलियों से राज हंस के शब्द सुन|
पिघल गए अवसाद पर्वत मुग्ध विस्फारित नयन|
देख प्रकृति के प्रेम सिंचित विलक्षण अद्दभुत क्षन |
टूटने लगे अहं के मिथ्या.....ये कुंठित अवगुंठन |
राज हंस हों अभिमंत्रित मंत्र प्रकृति से मुग्ध मन ||
---------------------अलका गुप्ता ----------------------
विकट निराशा पनप रही थी मन था वीरान |
ढूंढ रहा था कोना एक कहीं एकांत सूनसान |
लगने लगा वह साहिल अपना नदी वेग ऊफान |
खोया था मन सुलझाने में अंतर्मन के गुम्फन |
टूटी तंद्रा अठखेलियों से राज हंस के शब्द सुन|
पिघल गए अवसाद पर्वत मुग्ध विस्फारित नयन|
देख प्रकृति के प्रेम सिंचित विलक्षण अद्दभुत क्षन |
टूटने लगे अहं के मिथ्या.....ये कुंठित अवगुंठन |
राज हंस हों अभिमंत्रित मंत्र प्रकृति से मुग्ध मन ||
---------------------अलका गुप्ता ----------------------
सोमवार, 4 फ़रवरी 2013
हमारी पृथ्वी
सभी ग्रहों में है सबसे न्यारी ! हमारी धरती |
पृथ्वी तो माँ है और हमारा घर भी है धरती ||
गोल-मटोल धरा ये भण्डार अति...बसुन्धरा |
दिखती अंतरीक्ष से सुन्दर नीली हरी धरती||
स्वार्थ में अंधे हो अति दोहन कर रहे मानव |
भूल गए पालती पालने में लाड़ से माँ धरती ||
काटते पेड़ों को देते जो हमें जीवन...प्राण वायु |
छाँटकर पहाड़ों को नदी की धार में बाँध धरती ||
भूल ना गर्व में चूर मानव भवन देख गगनचुम्बी !
भूकंप कभी ज्यालामुखी से फुफकार उठेगी धरती ||
सच में माता है ये 'हमारी' ....भाग्यविधाता धरती |
उजाड़ ना हरियाला आँचल माँ के बाद है माँ धरती ||
--------------------अलका गुप्ता ----------------------
पृथ्वी तो माँ है और हमारा घर भी है धरती ||
गोल-मटोल धरा ये भण्डार अति...बसुन्धरा |
दिखती अंतरीक्ष से सुन्दर नीली हरी धरती||
स्वार्थ में अंधे हो अति दोहन कर रहे मानव |
भूल गए पालती पालने में लाड़ से माँ धरती ||
काटते पेड़ों को देते जो हमें जीवन...प्राण वायु |
छाँटकर पहाड़ों को नदी की धार में बाँध धरती ||
भूल ना गर्व में चूर मानव भवन देख गगनचुम्बी !
भूकंप कभी ज्यालामुखी से फुफकार उठेगी धरती ||
सच में माता है ये 'हमारी' ....भाग्यविधाता धरती |
उजाड़ ना हरियाला आँचल माँ के बाद है माँ धरती ||
--------------------अलका गुप्ता ----------------------
अलका भारती: मन के कुछ आक्रोशित भाव ..........
अलका भारती: मन के कुछ आक्रोशित भाव ..........: मन के कुछ आक्रोशित भाव .......... हौसले अरमान सभी होंगे पूरे एक दिन इक आस थी | समेट लुंगी बाहों में खुशियाँ सारी यही इक आस थी || तोड़ क...
मंगलवार, 29 जनवरी 2013
क्या नहीं किया .... हमने ?
भगवान पृथक किए उनके अपने |
अछूत तब कहाँ थे जब -
छीना उनका हिस्सा हमने |
दोषी हम .... उन्हें दोष दिया |
सेवा की .......... जिन्होंने |
जो करते रहे त्याग ...........|
उन्हें अपने से अलग किया |
और कहा उन्हें अछूत |
अछूत तो हम हैं |
जिन्हें है छूत का डर |
क्यों कि वह तो हैं..... अ - छूत ||
-------------अलका गुप्ता -------------
भगवान पृथक किए उनके अपने |
अछूत तब कहाँ थे जब -
छीना उनका हिस्सा हमने |
दोषी हम .... उन्हें दोष दिया |
सेवा की .......... जिन्होंने |
जो करते रहे त्याग ...........|
उन्हें अपने से अलग किया |
और कहा उन्हें अछूत |
अछूत तो हम हैं |
जिन्हें है छूत का डर |
क्यों कि वह तो हैं..... अ - छूत ||
-------------अलका गुप्ता -------------
सोमवार, 28 जनवरी 2013
कुछ भाव बचपन के लिए
--------------------------
मैं राही.....एक बचपन का |
निश्चिन्त मासूम सा बच्चा हूँ |
मम्मा पापा ने दुलराया भी|
प्यार से खूब सहलाया भी||
आज मैं नारज कुछ हूँ |
जिद में मचला बहुत हूँ |
तंग करने का इरादा है |
यहाँ एकांत में आया हूँ ||
ढूंढेगे जब परेशान होकर |
होगी माँगपूरी कुर्बान होकर
मैं क्यूँ करूँ चिंता बच्चा हूँ !
करूँ क्या मन का सच्चा हूँ !!
-------अलका गुप्ता --------
------------------------------------------------------
मैं बचपन ! अनजान निश्चिन्त राह का पथिक एक |
मैं ढलता ! हसरतों की सीढियाँ चढ़ता हर पल अनेक |
रूठता मचलता झिझकता हंसता चहकता अबोध सा |
जैसे मिटटी हो कुम्हार की निराकार गीला लौंदा एक ||
-------------------अलका गुप्ता----------------------------
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मैं राही.....एक बचपन का |
निश्चिन्त मासूम सा बच्चा हूँ |
मम्मा पापा ने दुलराया भी|
प्यार से खूब सहलाया भी||
आज मैं नारज कुछ हूँ |
जिद में मचला बहुत हूँ |
तंग करने का इरादा है |
यहाँ एकांत में आया हूँ ||
ढूंढेगे जब परेशान होकर |
होगी माँगपूरी कुर्बान होकर
मैं क्यूँ करूँ चिंता बच्चा हूँ !
करूँ क्या मन का सच्चा हूँ !!
-------अलका गुप्ता --------
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मैं बचपन ! अनजान निश्चिन्त राह का पथिक एक |
मैं ढलता ! हसरतों की सीढियाँ चढ़ता हर पल अनेक |
रूठता मचलता झिझकता हंसता चहकता अबोध सा |
जैसे मिटटी हो कुम्हार की निराकार गीला लौंदा एक ||
-------------------अलका गुप्ता----------------------------
शुक्रवार, 4 जनवरी 2013
बंधनों की झूठी लाज
तन -मन भिगो रही आज ...
यादों की हरश्रंगारी महक ।
अल्हड उन बतियों की चहक ।
ढलकी - ढलकी चितवन ये ।
रूखे अधरों का कंपन ये ।
बिखर गई अलकों में ...
बीते दिनों की राख सी ...
सिमट गई लाली जो ...
झुर्रियों में अनायास ही ...
कसक बहुत रही है आज ।
जो तोड़ ना सके थे कायर हाथ ।
उन बीते दिनों के अनचाहे ...
बंधनों की झूठी लाज ।।
---------अलका गुप्ता ----------
यादों की हरश्रंगारी महक ।
अल्हड उन बतियों की चहक ।
ढलकी - ढलकी चितवन ये ।
रूखे अधरों का कंपन ये ।
बिखर गई अलकों में ...
बीते दिनों की राख सी ...
सिमट गई लाली जो ...
झुर्रियों में अनायास ही ...
कसक बहुत रही है आज ।
जो तोड़ ना सके थे कायर हाथ ।
उन बीते दिनों के अनचाहे ...
बंधनों की झूठी लाज ।।
---------अलका गुप्ता ----------
---वह कौन थी---
---वह कौन थी---
आँखों में आंसू ,
हाय ! गले में फंदा |
आग ही आग थी ..
जल गयी वह ..
या जलाई गई ?
वह कौन थी ?
समझ गए आप ..ना !!
आप की सताई हुई |
रोती थी घबराई सी ,
या घुटन ही घुटन मिली |
लुट गए वसन जिसके ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप.. ना !!
बोलियाँ लगाई थीं ,
रात्रि के अंधेरों में |
लुट गई जो ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप ..ना !!
दिन के उजालों में ..
आपने बहन कहा |
सताई हुई जब मरी ,
घढ़ियाली आंसू बहाए..
आप ही आप ने |
मर गई जो ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप .. ना !!
मांगी थी इज्जत की ...
भीख जिसने ....
हँसे थे कितना आप तब |
आश्चर्य !!! भूल गए..
क्या ??? आप सब |
आपकी सताई हुई ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप ..ना !!
वह कौन थी ?
-----अलका गुप्ता -----
आँखों में आंसू ,
हाय ! गले में फंदा |
आग ही आग थी ..
जल गयी वह ..
या जलाई गई ?
वह कौन थी ?
समझ गए आप ..ना !!
आप की सताई हुई |
रोती थी घबराई सी ,
या घुटन ही घुटन मिली |
लुट गए वसन जिसके ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप.. ना !!
बोलियाँ लगाई थीं ,
रात्रि के अंधेरों में |
लुट गई जो ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप ..ना !!
दिन के उजालों में ..
आपने बहन कहा |
सताई हुई जब मरी ,
घढ़ियाली आंसू बहाए..
आप ही आप ने |
मर गई जो ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप .. ना !!
मांगी थी इज्जत की ...
भीख जिसने ....
हँसे थे कितना आप तब |
आश्चर्य !!! भूल गए..
क्या ??? आप सब |
आपकी सताई हुई ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप ..ना !!
वह कौन थी ?
-----अलका गुप्ता -----
बलत्कृत
कहाँ है सोन चिरैया मेरी ओ ! गौरैया तू |
फुदकती थी मटकती थी बिटिया मेरी तू |
मौन है आँगन मेरा.....आज उदास क्यूँ |
मचलती नहीं लिपटती नहीं ललिया क्यूँ ||
आज माहोल में समाई इतनी दहशत है क्यूँ |
राक्षसी आहट है संस्कारों में या दरिंदा कोई |
मैं बेचारा ! इतना लाचार सा हो रहा हूँ क्यूँ |
मैं संस्कृति हूँ ! भारत की छवि बलत्कृत ज्यूँ ||
------------------अलका गुप्ता --------------------
फुदकती थी मटकती थी बिटिया मेरी तू |
मौन है आँगन मेरा.....आज उदास क्यूँ |
मचलती नहीं लिपटती नहीं ललिया क्यूँ ||
आज माहोल में समाई इतनी दहशत है क्यूँ |
राक्षसी आहट है संस्कारों में या दरिंदा कोई |
मैं बेचारा ! इतना लाचार सा हो रहा हूँ क्यूँ |
मैं संस्कृति हूँ ! भारत की छवि बलत्कृत ज्यूँ ||
------------------अलका गुप्ता --------------------
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